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Tuesday, November 27, 2018

आचमन



आचमन
 आचमन क्या है इस विषय में शास्त्रों में इस प्रकार बतलाया गया है-
 आचमन की विधि यह है कि हाथ-पाँव धोकर पवित्र स्थान में आसन के ऊपर पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके बैठे। दाहिने हाथ को जानू अर्थात घुटने के भीतर रखकर दोनों चरण बराबर रखे तथा शिखा में ग्रन्थि लगाये और फिर उष्णता एवं फेन से रहित शीतल एवं निर्मल जल से आचमन करे। खड़े-खड़े, बात करते, इधर-उधर देखते हुए, शीघ्रता से और क्रोधयुक्त होकर, आचमन न करे।
 दाहिने हाथ में पाँच तीर्थ कहे गये हैं – (१) देवतीर्थ, (२) पितृतीर्थ, (३) ब्राह्मतीर्थ, (४) प्राजापत्यतीर्थ और (५) सौम्यतीर्थ। अब आप इनके लक्षणों को सुने – अँगूठे के मूल में ब्राह्मतीर्थ, कनिष्ठा के मूल में प्राजापत्यतीर्थ, अङ्गुष्ठ के बीच में पितृतीर्थ और हाथ के मध्य-भाग में सौम्यतीर्थ कहा जाता हैं, जो देवकर्म से प्रशस्त माना गया है।