शची (इन्द्राणी)
इन्द्राणी देवताओं के राजा इन्द्र की पत्नी हैं। इन्द्राणी असुर पुलोमा की पुत्री
थीं, जिनका वध इन्द्र के हाथों हुआ था। ऋग्वेद की देवियों में इन्द्राणी का स्थान
प्रधान हैं। ये इन्द्र को शक्ति प्रदान करने वाली और स्वयं अनेक ऋचाओं की ऋषि है।
शालीन पत्नी की यह मर्यादा और आदर्श हैं और गृह की सीमाओं में उसकी अधिष्ठात्री
हैं। द्रौपदी इन्हीं के अंश से उत्पन्न हुई थीं और ये स्वयं प्रकृति की अन्यतम कला
से जन्मी थीं। जयंत
(शास्त्रानुसार इन्द्राणी वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया 'गौरी
(अक्षय)
तृतीया' के व्रत के पुण्य-प्रताप से जयंत नामक पुत्र की मां बनी।
( भविष्यपुराण, ब्राह्मपर्व, अध्याय २१)
यह जयन्त वही है,
जिसने कौवे के रुप में माता सीता के पैरों में अपनी चोंच मारी थी तथा भगवान् श्रीराम
ने तृण से उसको एक आँख का बना दिया था) शची के ही पुत्र थे
और पुत्री का नाम जयिनी था।। शची को 'इन्द्राणी' , 'ऐन्द्री', 'महेन्द्री',
'पुलोमजा', 'पौलोमी' आदि नामों से भी जाना जाता है। मेरुगिरि के शिखर अमरावती
नामवाली एक रमणीय पुरी है। उसे पूर्वकाल में विश्वकर्मा ने बनाया था। उस पुरी में
देवताओं द्वारा सेवित इन्द्र अपनी साध्वी पत्नी शची के साथ निवास करते थे।
अपने कार्य क्षेत्र में इन्द्राणी विजयिनी और सर्वस्वामिनी हैं और अपनी शक्ति की घोषणा वह ऋग्वेद के मंत्र में करती हैं- ऋग्वेद के एक अत्यन्त सुन्दर और 'शक्तिसूक्त' में वह कहती हैं कि "मैं असपत्नी हूँ, सपत्नियों का नाश करने वाली हूँ, उनकी नश्यमान शालीनता के लिए ग्रहण स्वरूप हूँ, उन सपत्नियों के लिए, जिन्होंने मुझे कभी ग्रसना चाहा था।" उसी सूक्त में वह कहती हैं कि "मेरे पुत्र शत्रुहंता हैं और मेरी कन्या महती है"- 'मम पुत्रा: शत्रुहणोऽथो मम दुहिता विराट्।'
अपने कार्य क्षेत्र में इन्द्राणी विजयिनी और सर्वस्वामिनी हैं और अपनी शक्ति की घोषणा वह ऋग्वेद के मंत्र में करती हैं- ऋग्वेद के एक अत्यन्त सुन्दर और 'शक्तिसूक्त' में वह कहती हैं कि "मैं असपत्नी हूँ, सपत्नियों का नाश करने वाली हूँ, उनकी नश्यमान शालीनता के लिए ग्रहण स्वरूप हूँ, उन सपत्नियों के लिए, जिन्होंने मुझे कभी ग्रसना चाहा था।" उसी सूक्त में वह कहती हैं कि "मेरे पुत्र शत्रुहंता हैं और मेरी कन्या महती है"- 'मम पुत्रा: शत्रुहणोऽथो मम दुहिता विराट्।'