Sunday, January 27, 2019

ब्रह्माकृत भगवान्-स्तुती — भागवत पुराण


ब्रह्माकृत भगवान्-स्तुती — भागवत पुराण

॥ ब्रह्मोवाच ॥
ज्ञातोऽसि मेऽद्य सुचिरान्ननु देहभाजां
न ज्ञायते भगवतो गतिरित्यवद्यम् ।
नान्यत्त्वदस्ति भगवन्नपि तन्न शुद्धं
मायागुणव्यतिकराद् यदुरुर्विभासि ॥ १ ॥
रूपं यदेतदवबोधरसोदयेन ।
शश्वन्निवृत्ततमसः सदनुग्रहाय ।
आदौ गृहीतमवतारशतैकबीजं ।
यन्नाभिपद्मभवनाद् अहमाविरासम् ॥ २ ॥

Monday, January 21, 2019

श्रीमद्भागवतपुराण कुन्तीकृत श्रीकृष्ण स्तुति

श्रीमद्भागवतपुराण कुन्तीकृत श्रीकृष्ण स्तुति

नमस्ये पुरुषं त्वद्यमीश्वरं प्रकृते: परम् ।
अलक्ष्यं सर्वभूतानामन्तर्बहिरवास्थितम् ॥१॥
भावार्थ - 'हे प्रभो ! आप सभी जीवों के बाहर और भीतर एकरस स्थित हैं, फिर भी इन्द्रियों और वृत्तियों से देखे नहीं जाते क्योंकि आप प्रकृति से परे आदिपुरुष परमेश्वर हैं। मैं आपको बारम्बार नमस्कार करती हूँ।

मायाजवनिकाच्छन्नमज्ञाधोक्षमव्ययम् ।
न लक्ष्यसे मूढदृशा नटो नाटयधरो यथा ॥२॥
भावार्थ - इन्द्रियों से जो कुछ जाना जाता है, उसकी तह में आप ही विद्यमान रहते हैं और अपनी ही माया के पर्दे से अपने को ढके रहते हैं। मैं अबोध नारी आप अविनाशी पुरुषोत्तम को भला, कैसे जान सकती हूँ? हे लीलाधर ! जैसे मूढ़ लोग दूसरा भेष धारण किये हुए नट को प्रत्यक्ष देखकर भी नहीं पहचान सकते, वैसे ही आप दिखते हुए भी नहीं दिखते।

Tuesday, January 8, 2019

बुध के जन्म की कथा



बुध के जन्म की कथा
पौरोणिक कथानकों के अनुसार -
श्रीकृष्ण बोले — प्रजापति (ब्रह्मा) की पुत्री जो वृत्रासुर की कनिष्ठा भगिनी है 'तारा' नाम से विख्यात है । उस त्रैलोक्य सुन्दरी को उन्होंने देवों के आचार्य बृहस्पति को सविधान अर्पित किया । यद्यपि उस सुन्दरी तारा के रूपलावण्य द्वारा वे दोनों अत्यन्त मदन व्यथित थे तथापि वह अन्य स्त्रियों की भाँति बृहस्पति की सेवा करती थी । 

उस विशाल लोचना को, जो सौन्दर्य के निधान एवं मुग्धहास करने वाली थी, देखते ही चन्द्रमा काम पीडित होने लगे । उन्होंने संकेत करते हुए उससे मधुर शब्दों में कहा — तारा! आओ, आओ! विलम्ब न करो ।

Sunday, January 6, 2019

गाय का स्वरूप तथा देवताओं का अधिष्ठान



गाय का स्वरूप तथा देवताओं का अधिष्ठान 

भविष्यपुराण, उत्तरपर्व अध्याय ६९ में श्रीकृष्ण महाराज को गोवत्स द्वादशी का महात्म्य बतलाते हुए गाय के स्वरुप तथा उसमें देवताओं के वास का इस प्रकार उल्लेख करते हुए कहते हैं -
क्षीरोदतोयसम्भूता याः पुरामृतमन्थने ।
पञ्च गावः शुभाः पार्थ पञ्चलोकस्य मातरः ॥
नन्दा सुभद्रा सुरभिः सुशीला बहुला इति ।
एता लोकोपकाराय देवानां तर्पणाय च ॥
जमदग्निभरद्वाजवसिष्ठासितगौतमाः ।
जगृहुः कामदाः पञ्च गावो दत्ताः सुरैस्ततः॥
गोमयं रोचनां मूत्रं क्षीरं दधि घृतं गवाम् ।
षडङ्गानि पवित्राणि संशुद्धिकरणानि च ॥
गोमयादुत्थितः श्रीमान् बिल्ववृक्षः शिवप्रियः ।
तत्रास्ते पद्महस्ता श्रीः श्रीवृक्षस्तेन स स्मृतः ।
बीजान्युत्पलपद्मानां - पुनर्जातानि गोमयात् ॥
गोरोचना च माङ्गल्या पवित्रा सर्वसाधिका ।
गोमूत्राद् गुग्गुलुर्जातः सुगन्धिः प्रियदर्शनः ।
आहारः सर्वदेवानां शिवस्य च विशेषतः ॥
यद्वीजं जगतः किंचित् तज्ज्ञेयं क्षीरसम्भवम् ।
दधिजातानि सर्वाणि मङ्गलान्यर्थसिद्धये ।
घृतादमृतमुत्पन्नं देवानां तृप्तिकारणम् ॥
ब्राह्मणाश्चेव गावश्च कुलमेकं द्विधा कृतम् ।
एकत्र मन्त्रास्तिष्ठन्ति हविरन्यत्र तिष्ठति ॥
गोषु यज्ञाः प्रवर्तन्ते गोषु देवाः प्रतिष्ठिताः ।
गोषु वेदाः समुत्कीर्णाः सषडङ्गपदक्रमाः ॥
(उत्तरपर्व ६९। १६-२४)

गोवत्स द्वादशी



गोवत्स द्वादशी
पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौमाता का दर्शन और पूजन किया था । ऐसी मान्यता है कि इस दिन पहली बार श्री कृष्ण वन में गऊएं-बछड़े चराने गए थे । माता यशोदा ने श्री कृष्ण का शृंगार करके गोचारण के लिए तैयार किया था ।
व्रतोत्सव के अनुसार भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को मध्याह्न से पहले गोवत्स का पूजन किया जाता है तथा मदनरत्नाकरन्तर्गत भविष्योत्तरपुराण (भविष्य०, उत्तररपर्व ६९) के अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी को किया जाता है । इसमें प्रदोषव्यापिनी तिथि ली जाती है । यदि वह दो दिन हो या न हो तो 'वत्सपूजा वटश्चैव कर्तव्यो प्रथमेऽहनि' के अनुसार पहले दिन व्रत करना चाहिये । उस दिन सांयकाल के समय गायें चरकर वापस आयें तब तुल्य वर्ण की गौ और बछड़े का गन्धादि से पूजन करें ।