Sunday, January 6, 2019

गोवत्स द्वादशी



गोवत्स द्वादशी
पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौमाता का दर्शन और पूजन किया था । ऐसी मान्यता है कि इस दिन पहली बार श्री कृष्ण वन में गऊएं-बछड़े चराने गए थे । माता यशोदा ने श्री कृष्ण का शृंगार करके गोचारण के लिए तैयार किया था ।
व्रतोत्सव के अनुसार भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को मध्याह्न से पहले गोवत्स का पूजन किया जाता है तथा मदनरत्नाकरन्तर्गत भविष्योत्तरपुराण (भविष्य०, उत्तररपर्व ६९) के अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी को किया जाता है । इसमें प्रदोषव्यापिनी तिथि ली जाती है । यदि वह दो दिन हो या न हो तो 'वत्सपूजा वटश्चैव कर्तव्यो प्रथमेऽहनि' के अनुसार पहले दिन व्रत करना चाहिये । उस दिन सांयकाल के समय गायें चरकर वापस आयें तब तुल्य वर्ण की गौ और बछड़े का गन्धादि से पूजन करें ।

यह त्यौहार संतान की कामना और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है । इसमें गाय - बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है। साथ ही साथ महिलायें असली गाय और बछड़े की पूजा भी करती हैं । गोवत्स द्वादशी के व्रत में गाय का दूध-दही, गेहूं और चावल नहीं खाने का विधान है (इस दिन गाय की दूध की जगह भैंस या बकरी के दूध का उपयोग किया जाता है) । इनके स्थान पर इस दिन अंकुरित मोठ, मूंग, तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है और इन्हीं से बना प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है। साथ ही चाकू द्वारा काटा गया कोई भी पदार्थ भी खाना वर्जित होता है। व्रत के दिन शाम को बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
वत्स द्वादशी पूजा विधि
सर्वप्रथम व्रती को सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। दूध देने वाली गाय को उसके बछडे़ सहित स्नान कराना चाहिए। बाद में दोनों को नया वस्त्र ओढा़या जाता है। उनके गले में फूलों की माला पहनाई जाती है। माथे पर चंदन का तिलक लगाते हैं। सींगों को भी मढा़ जाता है। एक तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करना चाहिए-
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥

उपर्युक्त मंत्र का तात्पर्य है कि- "समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से उत्पन्न सुर तथा असुरों द्वारा नमस्कार की गई देवस्वरूपिणी माता, आपको बार-बार नमस्कार है। मेरे द्वारा दिए गए इस अर्ध्य को आप स्वीकार करें।"
इसके बाद गाय को उड़द की दाल से बने भोज्य पदार्थ खिलाने चाहिए और निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए-
सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस॥
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते।
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी॥

उपर्युक्त श्लोक का अर्थ है कि- "हे जगदम्बे! हे स्वर्गवासिनी देवी! हे सर्वदेवमयी! आप मेरे द्वारा दिए इस अन्न को ग्रहण करें। सभी देवतओं द्वारा अलंकृत माता नन्दिनी आप मेरा मनोरथ पूर्ण करें।
पूजन करने के बाद वत्स द्वादशी की कथा सुनें। गोधूलि में सारा दिन व्रत करके गौमाता की आरती करें। उसके बाद भोजन ग्रहण करें। जो लोग इस पर्व को वन द्वादशी के रूप में मनाते हैं वे पूजा के लिए प्रात:काल स्नान करके लकड़ी के पाटे पर भीगी मिट्टी से सात गाय, सात बछड़े, एक तालाब और सात ढक्कन वाले कलश बनायें। इसके बाद पूजा की थाली में भीगे हुए चने-मोठ, खीरा, केला, हल्दी, हरी दूर्वा, चीनी, दही, कुछ पैसे और चांदी का सिक्का रखें। अब एक लोटे में पानी लेकर उसमें थोड़ा कच्चा दूध मिला लें। माथे पर हल्दी का टीका लगा कर व्रत की कहानी सुनें । कथा के बाद कुल्हड़ीयों में पानी भरकर पाटे पर चढ़ा दें और खीरा, केला, चीनी व पैसे भी चढ़ा दें । इसके बाद एक परात को पटरे के नीचे रख कर तालाब में सात बार लोटे में कच्चा दूध मिला जल चढ़ायें । गाय तथा बछड़ो को हल्दी से टीका लगायें। परात का जल, चांदी का सिक्का व दूब हाथ में लेकर चढ़ायें। इस पटरे को धूप में रख दें और जब उसकी मिट्टी को सुख तो उसे किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें और पटरे का सामान मालिन आदि को दे दें ।



कथा
बछ बारस की कहानी (१)

प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था। वहां देवदानी नाम का राजा राज्य करता था। उसके दो रानियाँ थी जिनके नाम सीता और गीता थे । सीता को भैंस से तो गीता को गाय से बहुत लगाव था ।
थोड़े दिन बाद गीता की प्रिय गाय को एक सुन्दर सा बछड़ा हुआ । बछड़े और गौ माँ को सभी तरफ से बहुत प्यार मिलने लगा । इससे राजा की रानी सीता और भैंस को अत्यंत ईर्ष्या होने लगी ।
सीता ने इस कारण एक दिन गाय के बछडे को काट कर गेहूं की राशि में दबा दिया। थोड़ी देर बार जब राजा जब भोजन करने बैठे तभी आसमान से मांस और खून की वर्षा होने लगी । राजा के भोजन की थाली भी रक्त से सन गयी ।
यह सब देखकर राजा के होश उड़ गये और उन्हें अहसास हुआ की उनके राज्य में कोई बहुत बड़ा पाप हुआ है जिसकी सजा पुरे राज्य को मिलने वाली है ।
ईश्वर से विनती करने पर राजा को एक आकाशवाणी सुनाई दी – हे , राजन ! तेरे राज्य में तेरी रानी ने गौ माँ के नवजात बच्चे को काट कर गेहूं की राशि में दबा दिया है जिससे यह संकट पुरे राज्य में आया है | इस संकट से उभरने के लिए कल गोवत्स द्वादशी पर तुम्हे गाय तथा बछडे़ की पूजा करनी है ।
इस दिन व्रत रखकर एक ही समय खाना है जिसमे गेहूं का प्रयोग नही करना ना ही चाकू काम में लेना है ।
आकाशवाणी के अनुसार अगले दिन राजा ने रानियों सहित गौ और उसके बछड़े की पूजा की जिससे रानी के सभी पाप नष्ट हो गये । व्रत के प्रभाव से मरा हुआ बछड़ा फिर से जीवित हो गया ।

बछ बारस की कहानी ( २ )
एक बार एक गांव में भीषण अकाल पड़ा। वहां के साहूकार ने गांव में एक बड़ा तालाब बनवाया परन्तु उसमे पानी नहीं आया। साहूकार ने पंडितों से उपाय पूछा।
पंडितो ने बताया की तुम्हारे दोनों पोतो में से एक की बलि दे दो तो पानी आ सकता है। साहूकार ने सोचा किसी भी प्रकार से गांव का भला होना चाहिए।
साहूकार ने बहाने से बहु को एक पोते हंसराज के साथ पीहर भेज दिया और एक पोते को अपने पास रख लिया जिसका नाम बच्छराज था । बच्छराज की बलि दे दी गई । तालाब में पानी भी आ गया।
साहूकार ने तालाब पर बड़े यज्ञ का आयोजन किया। लेकिन झिझक के कारण बहू को बुलावा नहीं भेज पाये। बहु के भाई ने कहा ” तेरे यहाँ इतना बड़ा उत्सव है तुझे क्यों नहीं बुलाया ? मुझे तो बुलाया है , मैं जा रहा हूँ।
बहू बोली ” बहुत से काम होते है इसलिए भूल गए होंगें , अपने घर जाने में कैसी शर्म  मैं भी चलती हूँ।
घर पहुंची तो सास ससुर डरने लगे कि बहु को क्या जवाब देंगे। फिर भी सास बोली बहू चलो बछ बारस की पूजा करने तालाब पर चलें। दोनों ने जाकर पूजा की। सास बोली , बहु तालाब की किनार कसूम्बल से खंडित करो।
बहु बोली मेरे तो हंसराज और बच्छराज है , मैं खंडित क्यों करूँ। सास बोली ” जैसा मैं कहू वैसे करो “। बहू ने सास की बात मानते हुए किनार खंडित की और कहा ” आओ मेरे हंसराज , बच्छराज लडडू उठाओ। ”
सास मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी – हे बछ बारस माता मेरी लाज रखना।
भगवान की कृपा हुई। तालाब की मिट्टी में लिपटा बच्छराज व हंसराज दोनों दौड़े आये। बहू पूछने लगी “सासूजी ये सब क्या है ?” सास ने बहू को सारी बात बताई और कहा भगवान ने मेरा सत रखा है। आज भगवान की कृपा से सब कुशल मंगल है। खोटी की खरी , अधूरी की पूरी
हे बछ बारस माता जैसे सास का सत रखा वैसे सबका रखना।

बछ बारस की कहानी ( ३ )
एक सास बहु थी। सास को गाय चराने के लिए वन में जाना जाना था। उसने बहु से कहा “आज बज बारस है में वन जा रही हूँ तो तुम गेहू लाकर पका लेना और धान लाकर उछेड़ लेना। बहू काम में व्यस्त थी।
उसने ध्यान से सुना नहीं। उसे लगा सास ने कहा गेहूंला धानुला को पका लेना। गेहूला और धानुला गाय के दो बछड़ों के नाम थे। बहू को कुछ गलत तो लग रहा था लेकिन उसने सास का कहा मानते हुए बछड़ों को काट कर पकने के लिए चढ़ा दिया ।
सास ने लौटने पर पर कहा आज बछ बारस है , बछड़ों को छोड़ो पहले गाय की पूजा कर लें। बहु डरने लगी , भगवान से प्रार्थना करने लगी बोली हे भगवान मेरी लाज रखना , भगवान को उसके भोलेपन पर दया आ गई।
हांड़ी में से जीवित बछड़ा बाहर निकल आया। सास के पूछने पर बहु ने सारी घटना सुना दी। और कहा भगवान ने मेरा सत रखा , बछड़े को फिर से जीवित कर दिया।
इसीलिए बछ बारस के दिन गेंहू नहीं खाये जाते और कटी हुई चीजें नहीं खाते है। गाय बछड़े की पूजा करते है।
हे बछ बारस माता जैसे बहु की लाज रखी वैसे सबकी रखना।
खोटी की खरी ,अधूरी की पूरी।

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