Sunday, July 7, 2019
Saturday, July 6, 2019
Thursday, February 28, 2019
सोमवार व्रत कथा एवं व्रत विधि
सोमवार व्रत कथा एवं व्रत विधि
पहले समय में किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर के सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे। इतना सब कुछ से संपन्न होने के बाद भी वह व्यापारी बहुत दुखी था, क्योंकि उसका कोई पुत्र नहीं था। जिस कारण अपने मृत्यु के पश्चात् व्यापार के उत्तराधिकारी की चिंता उसे हमेशा सताती रहती थी। पुत्र प्राप्ति की इच्छा से व्यापरी प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था और शाम के समय शिव मंदिर में जाकर शिवजी के सामने घी का दीपक जलाया करता था। उसकी भक्ति देखकर मां पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया। भगवान शिव बोले- इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। जो प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है।
श्रीशिवप्रातःस्मरणस्तोत्रम्
श्रीशिवप्रातःस्मरणस्तोत्रम्
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् |
खट्ट्वङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥ १ ॥
जो सांसारिक भय को हरने वाले और देवताओं के स्वामी हैं, जो गंगाजी को धारण करते हैं, जिनका वृषभ वाहन हैं, जो अम्बिका के ईश है, तथा जिनके हाथ में खट्वांग त्रिशूल और वरद तथा अभयमुद्रा है, उन संसार-रोग को हरने के निमित्त अद्वितीय औषधरूप ईश (महादेवजी) का मैं प्रातः समय में स्मरण करता हूँ।
Saturday, February 23, 2019
शीघ्र विवाह के उपाय
शीघ्र विवाह के उपाय
1. शीघ्र विवाह के लिए सोमवार को 1200 ग्राम चने की दाल व सवा लीटर कच्चे दूध का दान करें। यह प्रयोग तब तक करते रहना है जब तक कि विवाह न हो जाय ।
2. जिन लड़कों का विवाह नहीं हो रहा हो या प्रेम विवाह में विलंब हो रहा हो, उन्हें शीघ्र मनपसंद विवाह के लिए श्रीकृष्ण के इस मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए ।
“क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।”
Friday, February 22, 2019
अष्टमूर्त्यष्टक स्तोत्र / अष्टमूर्तिस्तव / मूर्त्यष्टकस्तोत्र
अष्टमूर्त्यष्टक स्तोत्र / अष्टमूर्तिस्तव / मूर्त्यष्टकस्तोत्र
ब्रह्माजी के देवर्षि नारद, अंगिरा और भृगु तीन मानस पुत्र थे। अंगिरा के पुत्र बृहस्पति थे और भृगु के पुत्र का नाम कवि (शुक्र) था। महर्षि अंगिरा बृहस्पति और कवि को शिक्षा देने लगे और भृगु तपस्या के लिए वन में चले गए। कवि कुशाग्रबुद्धि होने से पढ़ने में तेज थे इसलिए अंगिरा पुत्रमोह के कारण दोनों बच्चों की शिक्षा में भेदभाव करने लगे। कवि ने जब देखा कि बृहस्पति की तरह उसे उतनी शिक्षा नहीं मिल रही है तो वह ऋषि अंगिरा की अनुमति लेकर किसी दूसरे गुरु की खोज में चल दिए। गौतम ऋषि के आश्रम में जाकर कवि ने उनसे संसार के सर्वश्रेष्ठ गुरु के बारे में पूछा। महर्षि गौतम बोले-'तीनों लोकों में तो सर्वश्रेष्ठ गुरु भगवान शंकर हैं। तुम उनकी शरण में जाओ।'
Tuesday, January 29, 2019
Sunday, January 27, 2019
ब्रह्माकृत भगवान्-स्तुती — भागवत पुराण
ब्रह्माकृत भगवान्-स्तुती — भागवत पुराण
॥ ब्रह्मोवाच ॥
ज्ञातोऽसि मेऽद्य सुचिरान्ननु देहभाजां
न ज्ञायते भगवतो गतिरित्यवद्यम् ।
नान्यत्त्वदस्ति भगवन्नपि तन्न शुद्धं
मायागुणव्यतिकराद् यदुरुर्विभासि ॥ १ ॥
रूपं यदेतदवबोधरसोदयेन ।
शश्वन्निवृत्ततमसः सदनुग्रहाय ।
आदौ गृहीतमवतारशतैकबीजं ।
यन्नाभिपद्मभवनाद् अहमाविरासम् ॥ २ ॥
ज्ञातोऽसि मेऽद्य सुचिरान्ननु देहभाजां
न ज्ञायते भगवतो गतिरित्यवद्यम् ।
नान्यत्त्वदस्ति भगवन्नपि तन्न शुद्धं
मायागुणव्यतिकराद् यदुरुर्विभासि ॥ १ ॥
रूपं यदेतदवबोधरसोदयेन ।
शश्वन्निवृत्ततमसः सदनुग्रहाय ।
आदौ गृहीतमवतारशतैकबीजं ।
यन्नाभिपद्मभवनाद् अहमाविरासम् ॥ २ ॥
Monday, January 21, 2019
श्रीमद्भागवतपुराण कुन्तीकृत श्रीकृष्ण स्तुति
श्रीमद्भागवतपुराण कुन्तीकृत श्रीकृष्ण स्तुति
नमस्ये पुरुषं त्वद्यमीश्वरं प्रकृते: परम् ।
अलक्ष्यं सर्वभूतानामन्तर्बहिरवास्थितम् ॥१॥
भावार्थ - 'हे प्रभो ! आप सभी जीवों के बाहर और भीतर एकरस स्थित हैं, फिर भी
इन्द्रियों और वृत्तियों से देखे नहीं जाते क्योंकि आप प्रकृति से परे आदिपुरुष
परमेश्वर हैं। मैं आपको बारम्बार नमस्कार करती हूँ।
मायाजवनिकाच्छन्नमज्ञाधोक्षमव्ययम् ।
न लक्ष्यसे मूढदृशा नटो नाटयधरो यथा ॥२॥
भावार्थ - इन्द्रियों से जो कुछ जाना जाता है, उसकी तह में आप ही विद्यमान रहते हैं
और अपनी ही माया के पर्दे से अपने को ढके रहते हैं। मैं अबोध नारी आप अविनाशी
पुरुषोत्तम को भला, कैसे जान सकती हूँ? हे लीलाधर ! जैसे मूढ़ लोग दूसरा भेष धारण
किये हुए नट को प्रत्यक्ष देखकर भी नहीं पहचान सकते, वैसे ही आप दिखते हुए भी नहीं
दिखते।
Tuesday, January 8, 2019
बुध के जन्म की कथा
बुध के जन्म की कथा
पौरोणिक कथानकों के अनुसार -
श्रीकृष्ण बोले — प्रजापति (ब्रह्मा) की पुत्री जो वृत्रासुर की कनिष्ठा भगिनी है 'तारा'
नाम से विख्यात है । उस त्रैलोक्य सुन्दरी को उन्होंने देवों के आचार्य बृहस्पति को
सविधान अर्पित किया । यद्यपि उस सुन्दरी तारा के रूपलावण्य द्वारा वे दोनों अत्यन्त
मदन व्यथित थे तथापि वह अन्य स्त्रियों की भाँति बृहस्पति की सेवा करती थी ।
उस विशाल लोचना को, जो सौन्दर्य के निधान एवं मुग्धहास करने वाली थी, देखते ही चन्द्रमा काम पीडित होने लगे । उन्होंने संकेत करते हुए उससे मधुर शब्दों में कहा — तारा! आओ, आओ! विलम्ब न करो ।
Sunday, January 6, 2019
गाय का स्वरूप तथा देवताओं का अधिष्ठान
गाय का स्वरूप तथा देवताओं का अधिष्ठान
क्षीरोदतोयसम्भूता याः पुरामृतमन्थने ।
पञ्च गावः शुभाः पार्थ पञ्चलोकस्य मातरः ॥
नन्दा सुभद्रा सुरभिः सुशीला बहुला इति ।
एता लोकोपकाराय देवानां तर्पणाय च ॥
जमदग्निभरद्वाजवसिष्ठासितगौतमाः ।
जगृहुः कामदाः पञ्च गावो दत्ताः सुरैस्ततः॥
गोमयं रोचनां मूत्रं क्षीरं दधि घृतं गवाम् ।
षडङ्गानि पवित्राणि संशुद्धिकरणानि च ॥
गोमयादुत्थितः श्रीमान् बिल्ववृक्षः शिवप्रियः ।
तत्रास्ते पद्महस्ता श्रीः श्रीवृक्षस्तेन स स्मृतः ।
बीजान्युत्पलपद्मानां - पुनर्जातानि गोमयात् ॥
गोरोचना च माङ्गल्या पवित्रा सर्वसाधिका ।
गोमूत्राद् गुग्गुलुर्जातः सुगन्धिः प्रियदर्शनः ।
आहारः सर्वदेवानां शिवस्य च विशेषतः ॥
यद्वीजं जगतः किंचित् तज्ज्ञेयं क्षीरसम्भवम् ।
दधिजातानि सर्वाणि मङ्गलान्यर्थसिद्धये ।
घृतादमृतमुत्पन्नं देवानां तृप्तिकारणम् ॥
ब्राह्मणाश्चेव गावश्च कुलमेकं द्विधा कृतम् ।
एकत्र मन्त्रास्तिष्ठन्ति हविरन्यत्र तिष्ठति ॥
गोषु यज्ञाः प्रवर्तन्ते गोषु देवाः प्रतिष्ठिताः ।
गोषु वेदाः समुत्कीर्णाः सषडङ्गपदक्रमाः ॥
(उत्तरपर्व ६९। १६-२४)
पञ्च गावः शुभाः पार्थ पञ्चलोकस्य मातरः ॥
नन्दा सुभद्रा सुरभिः सुशीला बहुला इति ।
एता लोकोपकाराय देवानां तर्पणाय च ॥
जमदग्निभरद्वाजवसिष्ठासितगौतमाः ।
जगृहुः कामदाः पञ्च गावो दत्ताः सुरैस्ततः॥
गोमयं रोचनां मूत्रं क्षीरं दधि घृतं गवाम् ।
षडङ्गानि पवित्राणि संशुद्धिकरणानि च ॥
गोमयादुत्थितः श्रीमान् बिल्ववृक्षः शिवप्रियः ।
तत्रास्ते पद्महस्ता श्रीः श्रीवृक्षस्तेन स स्मृतः ।
बीजान्युत्पलपद्मानां - पुनर्जातानि गोमयात् ॥
गोरोचना च माङ्गल्या पवित्रा सर्वसाधिका ।
गोमूत्राद् गुग्गुलुर्जातः सुगन्धिः प्रियदर्शनः ।
आहारः सर्वदेवानां शिवस्य च विशेषतः ॥
यद्वीजं जगतः किंचित् तज्ज्ञेयं क्षीरसम्भवम् ।
दधिजातानि सर्वाणि मङ्गलान्यर्थसिद्धये ।
घृतादमृतमुत्पन्नं देवानां तृप्तिकारणम् ॥
ब्राह्मणाश्चेव गावश्च कुलमेकं द्विधा कृतम् ।
एकत्र मन्त्रास्तिष्ठन्ति हविरन्यत्र तिष्ठति ॥
गोषु यज्ञाः प्रवर्तन्ते गोषु देवाः प्रतिष्ठिताः ।
गोषु वेदाः समुत्कीर्णाः सषडङ्गपदक्रमाः ॥
(उत्तरपर्व ६९। १६-२४)
गोवत्स द्वादशी
गोवत्स द्वादशी
पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी
दिन गौमाता का दर्शन और पूजन किया था । ऐसी मान्यता है कि इस दिन पहली बार श्री
कृष्ण वन में गऊएं-बछड़े चराने गए थे । माता यशोदा ने श्री कृष्ण का शृंगार करके
गोचारण के लिए तैयार किया था ।
व्रतोत्सव के अनुसार भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को मध्याह्न से पहले गोवत्स का
पूजन किया जाता है तथा मदनरत्नाकरन्तर्गत भविष्योत्तरपुराण (भविष्य०, उत्तररपर्व
६९) के अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी को किया जाता है । इसमें प्रदोषव्यापिनी
तिथि ली जाती है । यदि वह दो दिन हो या न हो तो 'वत्सपूजा वटश्चैव कर्तव्यो
प्रथमेऽहनि' के अनुसार पहले दिन व्रत करना चाहिये । उस दिन सांयकाल के समय गायें
चरकर वापस आयें तब तुल्य वर्ण की गौ और बछड़े का गन्धादि से पूजन करें ।
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