Saturday, November 24, 2018

पुनर्नवा

पुनर्नवा

पुनर्नवा या शोथहीन या गदहपूरना (वानस्पतिक नाम:Boerhaavia diffusa) एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है। श्वेत पुनर्नवा का पौधा बहुवर्षायु और प्रसरणशील होता है। क्षुप 2 से 3 मीटर लंबे होते हैं। ये प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में नए निकलते हैं व ग्रीष्म में सूख जाते हैं। इस क्षुप के काण्ड प्रायः गोलाई लिए कड़े, पतले व गोल होते हैं। पर्व संधि पर ये मोटे हो जाते हैं। शाखाएं अनेक लंबी, पतली तथा लालवर्ण की होती हैं। पत्ते छोटे व बड़े दोनों प्रकार के होते हैं। लंबाई 25 से 27 मिलीमीटर होती है। निचला तल श्वेताभ होता है व छूने पर चिकना प्रतीत होता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- पुनर्नवा। हिन्दी- सफेद पुनर्नवा, विषखपरा, गदपूरना। मराठी- घेंटूली। राजस्थानी - साटा। गुजराती- साटोडी। बंगला-श्वेत पुनर्नवा, गदापुण्या। तेलुगू- गाल्जेरू। कन्नड़-मुच्चुकोनि। तमिल- मुकरत्तेकिरे, शरून्नै। फारसी- दब्ब अस्पत। इंग्लिश- स्प्रेडिंग हागवीड। लैटिन- ट्रायेंथिमा पोर्टयूलेकस्ट्रम।

गुण : श्वेत पुनर्नवा चरपरी, कसैली, अत्यन्त आग्निप्रदीपक और पाण्डु रोग, सूजन, वायु, विष, कफ और उदर रोग नाशक है।
इस विशेषणात्मक नामकरण की पृष्ठभूमि पूर्णतः वैज्ञानिक है। पुनर्नवा का पौधा जब सूख जाता है तो वर्षा ऋतु आने पर इन से शाखाएँ पुनः फूट पड़ती हैं और पौधा अपनी मृत जीर्ण-शीर्णावस्था से दुबारा नया जीवन प्राप्त कर लेता है। इस विलक्षणता के कारण ही इसे ऋषिगणों ने 'पुनर्नवा' नाम दिया है।
पुनर्नवा के नामों के संबंध में भारी मतभेद रहा है। भारत के भिन्न-भिन्न भागों में तीन अलग-अलग प्रकार के पौधे पुनर्नवा नाम से जाने जाते हैं। ये हैं- बोअरहेविया डिफ्यूजा, इरेक्टा तथा रीपेण्डा। आय.सी.एम.आर. के वैज्ञानिकों ने वानस्पतिकी के क्षेत्र में शोधकर 'मेडीसिनल प्लाण्ट्स ऑफ इण्डिया' नामक ग्रंथ में इस विषय पर लिखकर काफी कुछ भ्रम को मिटाया है। उनके अनुसार बोअरहेविया डिफ्यूजा, जिसके पुष्प श्वेत होते हैं, ही औषधीय गुणों वाली है। बाजार में उपलब्ध पुनर्नवा में बहुधा एक अन्य मिलती-जुलती वनस्पति ट्रांएन्थीला पाँरचूली क्रास्ट्रम की मिलावट की जाती है। रक्त पुनर्नवा (लाल पुनर्नवा) एक सामान्य पायी जाने वाली घास है जो सर्वत्र सड़कों के किनारे उगी फैली हुई मिलती है। श्वेत पुनर्नवा रक्त वाली प्रजाति से बहुत कम सुलभ है इसलिए श्वेत औषधीय प्रजाति में रक्त पुनर्नवा की अक्सर मिलावट कर दी जाती है।
पुष्प पत्रकोण से निकलते हैं, छतरी के आकार के छोटे-छोटे सफेद 5 से 15 की संख्या में होते हैं। फल छोटे होते हैं तथा चिपचिपे बीजों से युक्त होते हैं ये शीतकाल में फलते हैं। पुनर्नवा की जड़ प्रायः 1 फुट तक लंबी, ताजी स्थिति में उँगली के बराबर मोटी गूदेदार व उपमूलों सहित होती है। यह सहज ही बीच से टूट जाती है। गंध उग्र व स्वाद तीखा होती है। उल्टी लाने वाला तिक्त गाढ़ा दूध समान द्रव्य इसमें से तोड़ने पर निकलता है। उपरोक्त गुणों द्वारा सही पौधे की पहचान कर ही प्रयुक्त किया जाता है।
रासायनिक संघटन : इस औषधि का मुख्य औषधीय घटक एक प्रकार का एल्केलायड है, जिसे पुनर्नवा कहा गया है। इसकी मात्रा जड़ में लगभग 0.04 प्रतिशत होती है। अन्य एल्केलायड्स की मात्रा लगभग 6.5 प्रतिशत होती है। पुनर्नवा के जल में न घुल पाने वाले भाग में स्टेरॉन पाए गए हैं, जिनमें बीटा-साइटोस्टीराल और एल्फा-टू साईटोस्टीराल प्रमुख है। इसके निष्कर्ष में एक ओषजन युक्त पदार्थ ऐसेण्टाइन भी मिला है। इसके अतिरिक्त कुछ महत्त्वपूर्ण् कार्बनिक अम्ल तथा लवण भी पाए जाते हैं। अम्लों में स्टायरिक तथा पामिटिक अम्ल एवं लवणों में पोटेशियम नाइट्रेट, सोडियम सल्फेट एवं क्लोराइड प्रमुख हैं। इन्हीं के कारण सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने की सामर्थ्य बढ़ती है।
परिचय : यह भारत के सभी भागों में पैदा होती है। इसकी जड़ और पंचांग का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। सफेद और लाल पुनर्नवा की पहचान यह है कि सफेद पुनर्नवा के पत्ते चिकने, दलदार और रस भरे हुए होते हैं और लाल पुनर्नवा के पत्ते सफेद पुनर्नवा के पत्तों से छोटे और पतले होते हैं। यह जड़ी-बूटियां बेचने वाली दुकान पर हमेशा उपलब्ध रहती है।
उपयोग : इस वनस्पति का उपयोग शोथ, पेशाब की रुकावट, त्रिदोष प्रकोप और नेत्र रोगों को दूर करने के लिए विशेष रूप से किया जाता है। आयुर्वेदिक योग पुनर्नवासव, पुनर्नवाष्टक, पुनर्नवा मण्डूर आदि में इसका उपयोग प्रमुख घटक द्रव्य के रूप में किया जाता है।

पुनर्नवा से विभिन्न रोगों का उपचार :
1. शरीर पुष्ट (मजबूत और ताकतवर) करना: पुनर्नवा को दूध के साथ खाने से शरीर पुष्ट होता है।
2. दिल के रोगों में: पुनर्नवा का हृदय के रोग से पैदा हुए अस्थमा में काफी लाभ होता है।
3. लम्बी उम्र के लिए: 20 ग्राम पुनर्नवा को रोजाना दूध के साथ 6 महीने तक लगातार पीने से मनुष्य की उम्र बढ़ती है।
4. मासिक-धर्म (रजोदर्शन): पुनर्नवा की जड़ और कपास की जड़ को बारीक पीसकर गर्म पानी से छान लें, फिर इस पानी के सेवन से मासिकस्राव में खून का अधिक आना तथा गर्भाशय के रोग दूर हो जाते हैं।
5. बुढ़ापे में जवानी के लिए: 2 ग्राम पुनर्नवा की जड़ों का चूर्ण गाय के दूध के साथ सेवन करने से बूढ़े शरीर में जवानी आ जाती है।
6. शरीर की झुर्रियों के लिए: पुनर्नवा की जड़ों का काढ़ा बनाकर उसमें बराबर मात्रा में असगंध का चूर्ण मिलाकर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। इस 1-1 गोली को खाकर ऊपर से मिश्री मिलाकर दूध पीने से वीर्य की कमी दूर होकर शरीर की झुर्रियां समाप्त हो जाती हैं या पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) के चूर्ण को दूध और शक्कर के साथ सेवन करें।
7. मूत्राघात (पेशाब में धातु का आना) : दूध में पुनर्नवा के पत्ते का रस मिलाकर पीने से पेशाब में आने वाला घात रुक जाता है।
8. फेफड़ों की सूजन: पुनर्नवा की जड़ को थोड़ी सी सोंठ के साथ पीसकर सीने पर मालिश करने से सूजन व दर्द समाप्त हो जाता है।
9. दिवांधता (दिन में न दिखाई देना): सफेद पुनर्नवा की जड़ को तेल में घिसकर आंखों में लगाने से लाभ होता है।
10. आंखों का फूला, जाला:
• विसखपरा या पुनर्नवा (गदहपुरैना) के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर आंखों में लगाने से आंखों के रोहे और फूले आदि कट जाते हैं।
• पुनर्नवा की जड़ के चूर्ण को घी में मिलाकर अंजन (काजल) बनाकर आंखों में लगायें। इससे आंखों का फूला और जाला कट जाता है। इसे दिन में 2 बार प्रयोग करना चाहिए।
11. खांसी: पुनर्नवा की जड़ के चूर्ण में शक्कर मिलाकर फांकने से सूखी खांसी मिट जाती है।
12. कनीनिका प्रदाह (आंखों की पुतली में जलन): पुनर्नवा (गदहपुरैना) की जड़ को साफ पानी में अच्छी तरह से धोकर पीस लें, फिर इसे शहद में मिलाकर आंखों में रोजाना 2 से 3 बार लगाने से पूरा आराम मिलता है।
13. मोतियाबिंद: विषखपड़ा (गदपुरैना, पुनर्नवा) जो सफेद फूलवाली हो, उसकी जड़ भंगरैया की पत्ते के रस से घिसकर रोजाना 2 से 3 बार आंखों में लगाने से काफी आराम आता है। इसके कुछ दिनों के लगातार प्रयोग से मोतियाबिंद समाप्त हो जाता है। आंखों की रोशनी मे चमक आ जाती है।
14. उरस्तोय: लगभग 14 से 28 मिलीमीटर पुनर्नवा की जड़ का रस दिन में 2 बार सेवन करने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) दूर होता है।
15. कब्ज: श्वेत गदहपुरैना (श्वेत पुनर्नवा) की जड़ का चूर्ण 5 से 10 ग्राम सोंठ के साथ मिलाकर दिन में 2 से 3 खुराक देने से शौच खुलकर आती है जिससे कब्ज दूर हो जाता है।
16. मूत्ररोग: पुनर्नवा को साग के रूप में बनाकर खाने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।
17. भगन्दर:
• पुनर्नवा, हल्दी, सोंठ, हरड़, दारूहल्दी, गिलोय, चित्रकमूल, देवदार और भारंगी के मिश्रण का काढ़ा बनाकर पीने से सूजन वाले भगन्दर में अधिक लाभ होता है।
• पुनर्नवा की जड़ और बरना की छाल को पकाकर काढ़ा बनाकर पीने भगन्दर में लाभ होता है।
18. जलोदर (पेट में पानी का भरना):
• पुनर्नवा के 40 से 60 मिलीलीटर फांट (घोल) में 1 से 2 ग्राम शोरा डालकर पिलाने से जलोदर का रोग मिट जाता है।
• पुनर्नवा, अपामार्ग, चिरायता और सोंठ को एक साथ लेकर काढ़ा बनाकर खाने से दिल के कार्य करने की क्षमता बढ़ती है और जलोदर कम होता है।
• पुनर्नवा (पुनर्नवा) की सब्जी खाने से भी जलोदर में लाभ होता है।
• पुनर्नवा (लाल गदहपुरैना) के पत्तों या जड़ का रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सोंठ के साथ सेवन करने और पत्तों को पीसकर गर्म करके लेप लगाने से जलोदर के कारण पेट में उत्पन्न होने वाले दर्दों में लाभ मिलता है।
• सूखे पुनर्नवा का फांट (घोल) बनाकर उसमें शोरा मिलाकर पीने से जलोदर में आराम मिलता है।
• पुनर्नवा के पत्तों की सब्जी बनाकर रोटी के साथ खायें।
• पुनर्नवा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को पीसकर पेट के ऊपर लेप करने से जलोदर समाप्त हो जाता है।
• पुनर्नवा की जड़ का रस 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2 बार देने से जलोदर में आराम मिलता है।
19. पेट का बढ़ना (अमाशय की प्रसारण): लाल पुनर्नवा के फूल वाली गदपुरैना के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर या मूल (जड़) का रस 6 से लेकर 10 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम देने से या लाल पुनर्नवा के पंचांग को पीसकर गर्म करके लेप करने से भी पेट की बढ़ोत्तरी दूर हो जाती है।
20. गठिया (घुटनों के दर्द):
• पुनर्नवा और कत्था को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से हड्डियों की कमजोरी दूर होती है और दर्द से आराम मिलता है।
• गठिया के रोगी को श्वेतपुनर्नवा (सफेद गदपुरैना) को सब्जी के रूप में प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
21. अन्दरूनी फोड़ा: सफेद पुनर्नवा की जड़ और वरुण की छाल को बराबर भाग में लेकर उसका 14 से 28 मिलीलीटर काढ़ा बना लें। इस काढे़ को 10 ग्राम शहद के साथ दिन में 2 बार लेने से आंतरिक फोड़े में लाभ होता है।
22. पेशाब के रोग: पुनर्नवा के पत्ते 3-4 ग्राम और 4 ग्राम कालीमिर्च शर्बत की तरह घोटकर पीने से पेशाब साफ आता है।
23. हृदय की आंतरिक सूजन: पुनर्नवा के पत्ते का रस सुबह-शाम 10 से 20 मिलीलीटर सेवन करने से आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार की सूजन में लाभकारी है।
24. नहरूआ (स्यानु):
• नहरूआ के रोगी को पुनर्नवा की जड़ को अदरक के रस में पीसकर घाव पर लगाएं।
• सफेद फूलों वाले पुनर्नवा की जड़ को उसके जूस के साथ घिसकर घाव पर लगाने से नहरूआ में उत्पन्न सूजन मिट जाती है।
25. .स्तनों के रोग: पुनर्नवा की जड़ का लेप बनाकर स्तनों पर लगाने से स्तन की जलन और जख्म ठीक हो जाता है।
26. गर्भ में मरा हुआ बच्चा निकालना : पुनर्नवा की 50 ग्राम ताजी जड़ का चूर्ण बनाकर 200 मिलीलीटर पानी में इतना पकाएं कि 50 मिलीलीटर ही बच जाए तब इसे छानकर सेवन कराने से गर्भिणी (गर्भवती महिला) मरा हुआ बच्चा प्रसव (प्रजनन) होकर बाहर निकल जाएगा।
27• आंखों के रोगों :पुनर्नवा की जड़ को गुलाबजल में घिसकर रोजाना सोते समय आंखों में लगाने से आंखों के अनेक रोग दूर होकर नज़र में सुधार होता है। पुनर्नवा के पत्तों का रस 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार शहद के साथ आंखों के रोगों में प्रयोग कर सकते हैं।
• पुनर्नवा की जड़ों को पीसकर घी में मिलाकर अंजन करने से आंखों की फूली कट जाती है।
• पुनर्नवा की जड़ों को पीसकर शहद में मिलाकर अंजन (काजल) की तरह लगाने से आंख की लाली ठीक हो जाती है।
28. आंखों की खुजली: पुनर्नवा की जड़ों को भांगरे के रस के साथ घिसकर आंखो में लगाने से आंखों की खुजली दूर होती है।
29. तिमिर (आंखों के आगे अंधेरा आना) : पुनर्नवा की जड़ों को केवल पानी के साथ घिसकर आंखों में लगाने से तिमिर रोग (आंखों के आगे अंधेरा आना) दूर हो जाता है।
30. मुख पाक (मुंह के छाले): मुंह में छाले होने पर पुनर्नवा की जड़ों को दूध में घिसकर छालों पर लेप करने से लाभ मिलता है।
31. शोथ (सूजन):
• लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पुनर्नवा मण्डूर दिन में 3 बार पानी के साथ लेने से शरीर की सूजन खत्म हो जाती है।
• लगभग 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में लाल पुनर्नवा के पत्तों का रस या इसकी जड़ का रस लगभग 10 ग्राम सोंठ के साथ सेवन करने से सूजन खत्म हो जाती है।
• पुनर्नवा के पत्तों को पीसकर गर्म करके लेप की तरह से लगाने से पेट में खराबी के कारण होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।
• पुनर्नवा के पत्तों के रस में सोंठ, कुटकी और चिरायता को मिलाकर खिलाने से हृदय रोग के कारण होने वाली सूजन ठीक हो जाती है।
• पुनर्नवा के पत्तों को सब्जी के रूप में खाने से शरीर में आई हुई सूजन ठीक हो जाती है।
• पुनर्नवा के पत्तों की सब्जी रोजाना सेवन करते हुए इसकी जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में लगभग आधा ग्राम नौसादर के साथ गर्म पानी के साथ सुबह-शाम पीने से तुरंत सूजन में आराम मिलता है।
• 10-10 ग्राम पुनर्नवा की जड़ और नागरमोथा लेकर कल्क (लुगदी) बना लें। फिर इसे 640 मिलीलीटर लेकर गाय के दूध में पकाकर वातज शोथ के रोग में सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
• पुनर्नवा की जड़ों, देवदारू तथा मूर्वा को मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ देने से गर्भावस्था से उत्पन्न शोथ (सूजन) उतर जाती है।
32. जलमय शोथ: पुनर्नवा की जड़, चिरायता और शुंठी तीनों को बराबर मात्रा में लेकर रख लें, फिर इस मिश्रण को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह एक चौथाई भाग शेष बचे तो बचा हुआ काढ़ा पीने से जलमय शोथ (सूजन) में लाभ होता है।
33. हड़फूटनी: 3 ग्राम पुनर्नवा को खैर की लुग्दी के साथ खाने से हड़फूटनी मिटती है।
34. बाइटें: 25 से 50 मिलीलीटर पुनर्नवा की जड़ों से बना काढ़ा सुबह-शाम पीने से बाईटें मिट जाती हैं।
35. कुष्ठ (कोढ़): पुनर्नवा को सुपारी के साथ खाने से कुष्ठ (कोढ़) के रोग में आराम आता है।
36. बुखार:
• 2 ग्राम श्वेत पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण ज्वर (बुखार) में दूध या ताम्बूल के साथ सुबह-शाम सेवन करने से बुखार में आराम आता है।
• पुनर्नवा का सेवन करने से पेशाब की जलन, मूत्रमार्ग (पेशाब करने के रास्ते में परेशानी) में संक्रमण के कारण पैदा हुए बुखार के रोग में भी तुरंत लाभ मिलता है।
• लाल पुनर्नवा, परवल की पत्ती, परवल का फल, करेला, पाठा, ककोड़ा आदि की सब्जी खाने से बुखार में लाभ होता है।
37. सर्प विष (सांप के जहर): पुनर्नवा का सेवन सांप के सभी प्रकार के जहरों को दूर करता है।
38. विद्रधि (फोड़ा): 5 ग्राम श्वेत पुनर्ववा की जड़ को 500 मिलीलीटर पानी में पकाकर चौथाई काढ़ा बचने के बाद उस काढ़े को 20 से 30 मिलीलीटर मात्रा सुबह-शाम पीने से आधे पक्के हुए फोड़े समाप्त हो जाते हैं।
39. नारू (त्वचा से एक तरह के कीड़े का निकलना): पुनर्नवा की जड़ और सोंठ को पुनर्नवा के रस में पीसकर नारू पर बांधने से नारू मिटता है।
40. बिच्छू के काटने पर:
• पुनर्नवा के पत्ते और अपामार्ग की टहनियों को पीसकर बिच्छू के डंक पर मसलने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।
• रविवार और पुष्प नक्षत्र के दिन उखाड़ी हुई पुनर्नवा की जड़ को चबाने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।
41. स्तनों के फोडे़: स्तनों के फोड़े होने पर पुनर्नवा की मूल (जड़) को छाछ के साथ पीसकर लेप करने से स्तनों के फोड़े ठीक हो जाते हैं।
42. प्रमेह (वीर्य विकार): पुनर्नवा के 1 ग्राम फूलों को सुखाकर और पीसकर, 3 ग्राम मिश्री में मिलाकर खाकर उसके ऊपर से दूध पीने से बल बढ़ता है और प्रमेह रोग समाप्त हो जाता है।
43. सभी प्रकार की सूजन: 20 ग्राम पुनर्नवा, नीम की छाल, पटोल के पत्ते, सोंठ, कटुकी, गिलोय, दारूहल्दी और हरड़ को एक साथ मिलाकर मिश्रण बना लें। इस पिसे मिश्रण को लगभग 320 मिलीलीटर पानी में डालकर गर्म करें, जब इसका चौथाई हिस्सा शेष बच जाये तो छान लें, फिर इसे 44 से 30 मिलीलीटर सुबह-शाम पीने से सभी प्रकार की सूजन, उदर रोग (पेट के रोग), पार्श्वशूल (कमर का दर्द) और दमा आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
45. पीलिया (कामला):
• पुनर्नवा की जड़ को साफ करके छोटे-छोटे 21 टुकड़ों में काट लें, फिर इन 21 टुकड़ों की माला बनाकर रोगी के गले में पहना दें। इसे पहनाने के बाद जब पीलिया ठीक हो जाए तो उस माला को किसी वृक्ष पर लटका देना चाहिए।
• पुनर्नवा का रस या मकोये का रस एक तिहाई कप शहद में मिलाकर दिन में 3 बार पिला सकते हैं।
• गदहपुरैना की नमक रहित सब्जी बनाकर खाने से पीलिया रोग जड़ से दूर हो जायगा।
• पुनर्नवा मण्डूर 1 गोली 3 बार पानी से लें।
• पुनर्नवा का 2 चम्मच रस सुबह-शाम भोजन के बाद शहद से रोजाना सेवन करने से और पुनर्नवा की जड़ के 108 टुकड़ों से बनी माला को गले में धारण करने से पीलिया के रोग में लाभ होता है।
• पुनर्नवा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) के 10-20 मिलीलीटर रस में हरड़ का 2-4 ग्राम चूर्ण मिलाकर पीने से पीलिया रोग कम हो जाता है।
46. वृक्क (गुर्दे) के रोग: punarnava benefits for kidney in hindi पुनर्नवा के 10 से 20 मिलीलीटर पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) के काढ़े का सेवन करने से वृक्क (गुर्दे) के रोगों में लाभ होता है।
47. वातकंटक: श्वेतपुनर्नवा मूल (जड़) को तेल में शुद्ध करके पैरों में मालिश करने से वातकंटक रोग दूर हो जाता है।
48. आमवात (गठिया, जोड़ों का दर्द): पुनर्नवा के काढ़ा के साथ कपूर तथा सौंठ के 1 ग्राम चूर्ण को 7 दिनों तक खाने से आमवात दूर होता है।
49. घाव और चोट लगने पर: पुनर्नवा की पत्तियों की लुगदी को घाव और चोट पर बांधने से आराम आता है।
50. रक्ताल्पता (खून की कमी, एनीमिया) : पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण, मुनक्का और हल्दी को बराबर मात्रा में पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम 1 कप दूध के साथ सेवन करने से खून की कमी के रोग में लाभ होता है।
51. हृदय (दिल) के रोग: पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण और सूखे पत्तों के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच की खुराक में रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करें। इससे दिल के अनेक रोगों में लाभ होता है।
52. रक्तप्रदर:
• पुनर्नवा के पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से मासिक-धर्म में खून जाने के रोग में लाभ मिलता है।
• पुनर्नवा की 3 ग्राम मात्रा को जलभांगरे के रस के साथ खाने से रक्तप्रदर का रोग मिटता है।
53. योनि शूल (दर्द): स्त्रियों के योनिशूल में पुनर्नवा के रस को योनि में लेप करने से महिलाओं के योनि का दर्द दूर हो जाता है।
54. सुख प्रसव (प्रजनन): पुनर्नवा की जड़ को तेल में चिकना करके योनि में रखने से प्रजनन आसानी होता है।
55. ड्रोप्सी: पुनर्नवा का सेवन ड्रोप्सी के रोग में हितकारी है।
56. पेशाब के रोग: पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से पेशाब की जलन, संक्रमण, रुकावट और पथरी के रोग में लाभ मिलता है।
57. विष (जहर) विकार: पुनर्नवा के पत्ते, जड़ और बीज को बराबर मात्रा में चूर्ण बनाकर 1 चम्मच दिन में 3 बार सेवन करने से शरीर में चढ़ा हुआ जहर निकल जाता है।
58. अनिद्रा (नींद का कम आना): 50 से 100 मिलीलीटर पुनर्नवा का काढ़ा पिलाने से रोगी को नींद आती है।
59. उर:क्षत (छाती में जख्म) : उर:क्षत के रोगी के थूक में बार-बार रक्त (खून) आ रहा हो तो 5 से 10 ग्राम पुनर्नवा की मूल (जड़) तथा शाठी चावलों के चूर्ण को मुनक्का के रस, दूध और घी में पकाकर पिलाने से आराम मिलता है।
60. दमा: पुनर्नवा की जड़ के 3 ग्राम चूर्ण में लगभग आधा ग्राम हल्दी को मिलाकर सुबह-शाम खिलाने से दमा का रोग मिट जाता है।
61. बच्चों के रोग: 100 मिलीलीटर पुनर्नवा के पत्तों का रस, 200 ग्राम मिश्री का चूर्ण तथा 12 ग्राम पिप्पली (पीपल) के चूर्ण को मिलाकर पकायें, जब चाशनी गाढ़ी हो जाये तो इसे उतारकर बंद बोतल में भर लें, इस शर्बत की 4 से 10 बूंद बच्चों को दिन में 3 बार चटायें। इससे बच्चों की खांसी, सांस, जुकाम, फुफ्फुस (फेफड़ों के रोग), लार अधिक बहना, जिगर बढ़ जाना या जिगर की अन्य खराबी और प्रतिश्याय (नजला) आदि रोग दूर हो जाते हैं।
62. वमन (उल्टी): 2 से 5 ग्राम पुनर्नवा की मूल (जड़) के चूर्ण के सेवन से (उल्टी) बंद हो जाती है।
63. विरेचक (दस्त लाने वाला): पुनर्नवा मूल (जड़) का चूर्ण दिन में 2 बार चाय के चम्मच जितनी मात्रा में लेने से मृदु विरेचक का काम करता है जिससे पेट साफ हो जाता है।
64. उदर (पेट) के रोग: पुनर्नवा की जड़ को गाय के मूत्र (पेशाब) के साथ देने से सभी प्रकार के शोथ (सूजन) तथा पेट के रोग दूर हो जाते हैं।
65. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी):
• पुनर्नवा के 5-7 पत्तों को 2-3 कालीमिर्च के दानों के साथ पीस-छानकर पिलाने से पेशाब करने में परेशानी मिट जाती है।
• पुनर्नवा के 5 से 10 मिलीलीटर पत्तों के रस को दूध में मिलाकर पिलाने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
• पुनर्नवा का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) या जड़ का सूखा चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में शहद या गर्म पानी के साथ सेवन करें। इससे सूजन, मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी या जलन) तथा दिल के रोग ठीक हो जाते हैं।
पुनर्नवा के आयुर्वेदिक योग
पुनर्नवाष्टक क्वाथ : पनुर्नवा की जड़, नीम की अंतरछाल, पटोलपत्र, सोंठ, कुटकी, गिलोय, दारुहल्दी और हरड़ ये आठों द्रव्य समान मात्रा में लेकर मोटा-मोटा कूट लें। 2 चम्मच चूर्ण लेकर 2 कप पानी में डालें और काढ़ा करें। जब पानी आधा कप बचे तब उतारकर छान लें व ठंडा करके पी लें। इसी प्रकार शाम को भी काढ़ा बनाकर पिएं। यह योग उत्तम मूत्रल और शोथनाशक औषधि है। इसके सेवन से सर्वांग शोथ, उदर विकार और श्वास-कास में भी लाभ होता है तथा दस्त साफ होता है।
पुनर्नवासव : पुनर्नवा, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, दारुहल्दी, गोखरू, छोटी कटेली, बड़ी कटेली, अडूसे के पत्ते, एरण्ड की जड़, कुटकी, गजपीपल, नीम की अंतरछाल, गिलोय, सूखी मूली, धमासा, पटोलपत्र ये 20 द्रव्य 10-10 ग्राम, धाय के फूल 150 ग्राम, मुनक्का 200 ग्राम, मिश्री एक किलो और शहद आधा किलो लें। सब द्रव्यों को कूट-पीसकर शहद सहित 5 लीटर पानी में डालकर काँच के बर्तन में भरकर एक मास तक रखा रहने दें। एक मास बाद मोटे कपड़े से छानकर बोतलों में भर लें। यह पुनर्नवासव है। इसे 2-2 बड़े चम्मच, आधा कप पानी में डालकर सुबह-शाम दोनों वक्त भोजन के बाद पीना चाहिए।
यह योग शोथ, उदर रोग, प्लीहा वृद्धि, यकृत (लीवर) वृद्धि, अम्ल पित्त, गुल्म, ज्वर आदि जैसे कष्टसाध्य रोगों को ठीक करता है। यह उत्तम मूत्रल (पेशाब लाने वाला) और हृदय के लिए हितकारी है। शरीर में किसी भी कारण से आए शोथ को यह योग दूर कर देता है। यदि शोथ बहुत तीव्र हो तो इसके साथ ही सारिवासव 2-2 चम्मच मिलाकर लेना चाहिए।

पुनर्नवा अर्क : पुनर्नवा पंचांग को चौगुने जल में डालकर, अर्क निकालने की विधि से इसका अर्क निकाल लें। इसे दिन में 2-3 बार 2-2 छोटे चम्मच, आधा कप पानी में डालकर पीने से सब प्रकार के शोथ मिट जाते हैं, पेशाब की रुकावट दूर होती है और खुलकर पेशाब होता है। 2-2 बूँद आँखों में डालने से आँखों की शोथ (सूजन), जलन व पीड़ा दूर होती है।

पुनर्नवा का तांत्रिक उपयोग भी प्रसिद्ध है - इसको वशीकरण के लिये तथा राजस्थान क्षेत्र में पीलिया होने पर अभिमन्त्रित कर इसकी जड़ को गले में अथवा बाजू पर बाँधने के लिये भी दी जाती है।

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