Monday, December 3, 2018

विहार पंचमी अथवा विवाह पंचमी


विहार पंचमी अथवा विवाह पंचमी
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि विशेष माना जाता है। रामायण के अनुसार त्रेता युग में सीता-राम का विवाह इसी दिन हुआ माना जाता है। मिथिलाचंल और अयोध्या में यह तिथि 'विवाह पंचमी' के नाम से प्रसिद्ध है। विहार पंचमी अथवा विवाह पंचमी हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी बांकेबिहारी के प्रकट होने की तिथि भी है। इस वर्ष २०१८ में यह १२ दिसम्बर २०१८ को मनायी जायेगी।

रामायण के अनुसार त्रेता युग में सीता-राम का विवाह इसी दिन हुआ माना जाता है। इस दिन की तैयारियां जनकपुर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में 7 दिन पहले से शुरु हो जाती है। भारत में कुछ जगहों पर खास तौर पर मिथिला क्षेत्र में विवाह पंचमी के दिन लोग अपनी कन्याओं का विवाह इस तिथि को नहीं करते है। भृगु संहिता में इस दिन को विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त के रुप में बताया गया है। इसके बावजूद भी कुछ जगहों के लोग जैसे मिथिलावासी इस दिन अपनी बेटियों की शादी करना पसंद नहीं करते। इसके पीछे उनकी धारणा यह है कि इस दिन विवाह होने के कारण ही देवी सीता और भगवान राम को पूर्ण वैवाहिक जीवन का सुख नहीं मिला था। विवाह के बाद ही माता सीता को वनवास जाना पड़ा। जब राम को राजा बनने का सौभाग्य मिलने वाला था तब देवी सीता को भगवान राम के संग वन में जाना पड़ा। जब वन से लौटकर राम अयोध्या के राजा बने तब राजधर्म निभाने के लिए राम को सीता से अलग होना पड़ा। देवी सीता मिथ्या कलंक के कारण वन में भेज दी गई। इस दिन कई जगहों पर रामचरित मानस का पाठ भी करवाया जाता है, लेकिन यह पाठ राम-जानकी विवाह प्रसंग तक ही करते हैं। आगे का पाठ नहीं करते है ऐसा माना जाता है कि इसके आगे सीताजी को कष्टों का सामना करना पड़ा था, इसीलिए राम-जानकी विवाह जैसे शुभ प्रसंग के साथ ही पाठ का समापन कर देना चाहिए।

भगवान राम और माता सीता का विवाह?
प्रातः काल स्नान करके श्री राम विवाह का संकल्प लें।
भगवान् राम और माता सीता की प्रतिकृति की स्थापना कर।
भगवान् राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र अर्पित कर ।
इनके समक्ष बालकाण्ड में विवाह प्रसंग का पाठ करें या "ॐ जानकीवल्लभाय नमः" का जप करें ।
इसके बाद माता सीता और भगवान राम का गठबंधन करें, उनकी आरती करें ।
इसके बाद गाँठ लगे वस्त्रों को अपने पास सुरक्षित रख लें ।

श्रीराम विवाह के दिन मंत्रों का जाप करने से विवाह शीघ्र होगा?
श्री राम विवाह के दिन पीले वस्त्र धारण करें।
तुलसी या चन्दन की माला से मंत्र या दोहों का यथाशक्ति जप करें।
जप करने के बाद शीघ्र विवाह या वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करें।
इनमें से किसी भी एक दोहे का जप करना लाभकारी होगा.-
1- प्रमुदित मुनिन्ह भावँरीं फेरीं। नेगसहित सब रीति निवेरीं॥
राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं॥
2- पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हियँ हरषे तब सकल सुरेसा॥
बेदमन्त्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं॥
3- सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥
- इस दिन किसी नवदंपत्ति को घर पर बुलाकर उनका यथोचित सम्मान करें
- उन्हें भोजन करायें तथा दोनों को यथाशक्ति उपहार देकर उनसे आशीर्वाद लें.

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी श्री बांकेबिहारी के प्रकट होने की तिथि भी है।  ब्रजमंडल में यह 'विहार पंचमी' के नाम से विख्यात है। मान्यता है कि श्री बांकेबिहारी रात्रि में निधिवन में प्रतिदिन विहार करते हैं। निधि वन में जहां श्री बांकेबिहारी प्रकट हुए थे, विहार पंचमी के दिन उस स्थान का सुबह दूध से अभिषेक होता है। बिहारी जी के मन्दिर में भव्य सजावट होती है। दोपहर में स्वामी हरिदास की सवारी निधि वन से श्री बांकेबिहारी के मंदिर बड़ी धूमधाम से पधारती है। बांकेबिहारी के भक्तों के लिए विहार पंचमी का महत्त्व जन्माष्टमी के समान है।

प्राक्टय कथा


स्वामी हरिदास जी, वृन्दावन
रसिकों के परम आराध्य श्रीबांकेबिहारी के प्राक्टय की कथा अद्भुत है। माना जाता है कि आज से लगभग पांच शताब्दी पूर्व राधा रानी की सखी ललिता ने स्वामी हरिदास के रूप में अवतार लिया। स्वामी हरिदास वृन्दावन के निधि वन के एकांत में अपने दिव्य संगीत से प्रिया-प्रियतम(राधा-कृष्ण) को रिझाते थे। मान्यता है कि संगीत की तान पर उन लोगों की रासलीला आरम्भ हो जाती थी। इस लीला का प्रत्यक्ष दर्शन उनके शिष्य नहीं कर पाते थे। स्वामी हरिदास के प्रिय शिष्य और भतीजे विठ्ठल विपुलदेव ने अपनी जन्मतिथि मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी के दिन उनसे कुंजबिहारी और विहारिणी जू के सगुण-साकार रूप का दर्शन करवाने का अनुरोध किया। इस पर स्वामी हरिदास ने अपने तानपूरे पर तान छेड़ी, तो प्रिया प्रियतम प्रकट हो गये। उनके अलौकिक तेज़ के तीव्र प्रकाश को उनकी आंखे सहन नहीं कर पा रही थी। तब स्वामी हरिदास ने प्रार्थना की-
सहज जोरी प्रगट रहति नित।
जु रंग की गौर-स्याम,घन-दामिनि जैसे।
प्रथम हुं हुते , अब हूं, आगे हूं रहिहै, न टरिहै तैसे॥
अंग-अंग की उजराई,सुघराई,चतुराई, सुंदरता ऐसे।
हरिदास के स्वामी, स्यामा-कुंजबिहारी,सम वैसे वैसे॥
स्वामी हरिदास के आग्रह पर श्यामाजू श्यामसुंदर में ऐसे लीन हो गईं, जैसे बिजली चमकने के बाद मेघ में लीन हो जाती है। इस प्रकार प्रिय-प्रियतम का युगल स्वरूप श्रीबांकेबिहारी के रूप में सामने आया।

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