ऊँटकटारा / ब्रह्मदंडी / उष्टकंटक
ऊँटकटेरा के क्षुप (झाड़ीनुमा पौधे) जंगलों में होते हैं इसकी टहनियां (डाल), फल और पत्ते सभी पर तेज कांटे होते हैं। ऊँटकटेरा वृक्ष की सभी टहनियों के ऊपर गोल फल होते हैं जो चारों तरफ करीब एक-एक इंच लंबे कांटों से भरा होता है। यह घरेलू जानवरों की बीमारी में विशेष रूप से प्रयोग की जाती है। इसकी शाखाएं जड़ से फूटती है । यह सूरजमुखी कुल का, सीधे तने वाला, काँटों से भरा हुआ, १-२ फुट की ऊँचाई वाला पौधा है। इसकी पत्तियां सत्यानाशी के पौधे जैसे ही फैली हुए और कांटेदार होती हैं। यह बहुशाखीय है । ऊँटकटारा के ढोढे होते हैं जिनपर कांटे होते हैं। इस पर नीले-बैंगनी रंग के छोटे-छोटे फूल गुच्छों में आते हैं। इसकी मूसला जड़ भूमि में बहुत अन्दर तक धंसी रहती हैं।
आयुर्वेद चिकित्सा में जड़ की छाल का चूर्ण अधिकतर प्रयोग में लिया जाता है | इसके पीले रंग के डोडे लगते हैं, जिन पर कांटे होते हैं । इस वनस्पति को ऊँट बहुत-बहुत प्रेम से खाते हैं । यह पौधा मध्य भारत मालवा मारवाड़ संयुक्त प्रांत तथा दक्षिण में रेतीले प्रदेशों, बंजर खेतों मैदानों में पायी जाती है।
रासायनिक संरचना - कई सक्रिय घटकों में से, एपिगेनिन, एपिगेनिन -7-ओ-ग्लूकोसाइड, इचिनाटिनिन, 5,7-डायहाइड्रोक्सी -8,4'-डायमेथॉक्सी-फ्लैवनोन -5-ओ-एल्फा-एल-हृनमोपाइरानोसील-7-ओ-बीटा-डी -र्बिनोपीरानोसिल- (1 → 4) -ओ-बीटा-डी-ग्लुकोपाइरानोसाइड है।
हिंदी – ऊंट कटारा
संस्कृत – उष्टकंटक, कंतफल, कर्भादन, वृत्तगुच्छ
बंगाली – ठाकुरकांटा
मराठी – ऊँटकटीरा
अरबी – स्तरखर
गुजराती – शुलियों
कन्नड़– ब्रह्मदण्डी Brahmadande
तेलुग– ब्रह्मदण्डी
अंग्रेजी – Indian globe thistle, Camel’s thistle
लेटिन – Echinops Echinatus
ऊँटकटारा का वैज्ञानिक वर्गीकरण
किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
सबक्लास Subclass: एस्टीरिडेएइ Asteridae
आर्डर Order: ऐस्टेरेल्स Asteridae
परिवार Family: Asteraceae – Aster family
जीनस Genus: एकिनोप्स Echinops
प्रजाति Species: एकिनोप्स एकिनाटस Echinops echinatus
गुण दोष और प्रभाव:- आयुर्वेदिक मत से ऊंट कटारा चरापरा, कड़वा कफ- वात
नाशक, हल्का रुचिकारक, गर्म, वीर्य-वर्धक तथा मूत्रकृच्छ, पित्तवात,प्रमेह , ह्रदय
रोग और विषों को शान्त करने वाला है । इसके बीज शीतल वीर्यवर्धक और मधुर है । इसकी
जड़ें गर्भ श्रावक, कामोद्दीपक है ।
यूनानी मत:- यूनानी मत से यह वनस्पति कड़वी अग्निवर्धक और ज्वर नाशक है । यकृत को उत्तेजना देने वाली और क्षुधा-वर्धक है । आंखों की तकलीफ, जीर्ण ज्वर, जोड़ों के दर्द और मस्तक की बीमारियों में भी यह लाभदायक है l यह शुक्राणु हीनता की समस्या का सबसे प्रभावशाली समाधान है यह वीर्यवर्धक एवं जोश-वर्धक है । इससे नपुंसकता दूर होती है । इसकी जड़ कामोद्दीपक पौष्टिक और मूत्र निस्सारक (Diuretic) होती है l
सिद्ध उपयोग:--
प्रमेह – शुक्रमेह :- ऊँटकटारा की जड़ की छाल ३ माशे, गोखरू 3 माशे और मिश्री ६ माशे लेकर – इन तीनो का बारीक़ चूर्ण करके सवेरे एवं शाम दूध के साथ सेवन करने से प्रमेह की समस्या का नाश होता है ।
गठिया रोग :- ऊँटकटेरा की जड़ का रस 10 से 20 मिलीलीटर रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से गठिया रोग ठीक होता है ।
मंदाग्नि :- इसकी जड़ की छाल का चूर्ण और छुहारे की गुठली का चूर्ण 3 – ३ माशे लेकर फंकी लेने से मंदाग्नि में लाभ होता है ।
खांसी :- इसकी छाल के चूर्ण को पान में रखकर खाने से कफ की खांसी नष्ट होती है ।
मूत्रकृच्छ :- ताल मखाना और मिश्री के साथ इसकी जड़ की छाल का मिश्रण देने से मूत्र जलन मूत्रकृच्छ (पेशाब का रुक – रुक कर आना) में लाभ होता है l
शीघ्रपतन एवं पौरुष वृद्धि :- १॰ इसकी जड़ की छाल १ तोला ले कर उसे कुचल कर पोटली में बांधकर आधा सेर गाय का दूध और एक सेर पानी में खौलाएं लें उसमें चार खारक (छुहारा) भी डाल दें जब पानी में जलकर दूध मात्र रह जाए, तब उस पोटली को मिलाकर फेंक दें और उस दूध को गुनगुना कर पीयें । यह दूध अत्यंत काम-शक्ति-वृद्धि-वर्धक होता है ।
२॰ लगभग 5 ग्राम की मात्रा में ऊंटकटेरा की जड़, 3 ग्राम की मात्रा में अकरकरा और 3 ग्राम की मात्रा में असगन्ध को लेकर तथा इसको पीसकर हलवा में मिलाकर सेवन करने से सम्भोग की क्षमता बढ़ती है।
३॰ ऊँटकटारे की जड़ की छाल को पीसकर एवं छानकर रख लेना चाहिए । इस चूर्ण में 'मुगली वेदाना' एक तोला छानकर एवं इसके चूर्ण में मिलकर पीना चाहिए । इस योग के सेवन से पुराने से पुराना प्रमेह मिटता है एवं वीर्य की वृद्धि होती है ।
लिंग (पुरुष जननांग के दोषों को दूर करना) :- लिंग की इन्द्रियों के दोषों को दूर करने के लिए 3 ग्राम ऊंटकटेरा की जड़ के छिलके को 15 मिलीलीटर पानी में पीसकर लिंग पर मालिश करने से लाभ मिलता है।
शरीर को शक्तिशाली बनाना :- ऊंटकटोरे के ऐसे पौधे को जड़ सहित उखाड़कर जिसमें फल और फूल हो, छाया में सुखा लें और इसके पञ्चांग का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को लगभग 5 ग्राम रात को सोते समय दूध के साथ लेने से व्यक्ति के शारीरिक बल में वृद्धि होती है ।
कमजोरी :- 5-10 मिलीलीटर ऊंटकटेरा की जड़ (मूल) का रस सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है। इससे शरीर मजबूत बनता है ।
सर्पदंश एवं बिच्छुदंश :- सर्प एवं बिच्छु के दंश में ऊंटकटारा की जड़ को पानी में घिस कर लगाने एवं पीने से जहर उतरने लगता है ।
प्रसव :- प्रसव काल में समय पर जब कोई स्त्री भयंकर रूप से कष्ट पा रही हो और अनेक उपचार करने पर भी उसका प्रसव ना होता हो, उस समय मैं इसकी जड़ को पानी के साथ घिसकर १ तोला भर की मात्रा में पिलाने से तुरंत प्रसव हो जाता है ।
गर्भनिवारक :- ऊंटकटेरा को पीसकर स्त्री के सिर, तालु में लेप करने से बच्चे का जन्म तुरन्त हो जाता है। बच्चा होने के तुरन्त बाद इस दवा को तुरन्त निकालकर फेंक देना चाहिए, क्योंकि इससे हानि होने की आशंका होती है। यह गर्भ तक को बाहर निकाल देती है ।
गर्भपात :- ऊंटकटेरा की जड़ को पानी में पीसकर पेडू (नाभि) पर लेप कर दें। गर्भ गिरने पर लेप को तुरन्त पानी से धो देना चाहिए ।
रसायन मिश्रण :- ऊंटकटारे की जड़ की छाल पीस छानकर उसका चूर्ण करके रख देना चाहिए । फिर मोगली बेदाना एक और मिश्री 2 तोला इन सब को रात्रि के समय पाव भर पानी में भिगो देना चाहिए । सवेरे उस पानी को छानकर उसमें उपर्युक्त चूर्ण 3 माशे की मात्रा में डालकर पी लेना चाहिए । इस योग के सेवन से पुराना प्रमेह और सुजाक, मूत्र जलन, नष्ट होकर वीर्य वृद्धि और पौरुष वृद्धि होती है l
योग ऊंट कटारा :- मस्तगी रूमी, सालम पंजा, मोती पिष्टी ,मकरध्वज, स्वर्ण भस्म, रजत भस्म, सकाकुल, अजवाइन खुरासानी, हरमल, मोमियाई, अंबर, केसर, सफेद मूसली का रस, अश्वगंधा के पत्तों का रस, पारे की ७ भावनाएं लगाकर ऊंट कटारा योग तैयार करें ।
सुबह शाम एवं रात को एक एक चम्मच दूध के साथ सेवन करें । यह योग अत्यंत प्रभावशाली है ,काम शक्ति बढ़ाता है । नपुंसकता दूर करता है । लिंग को कठोर करता है। वीर्यवर्धक है ।
हानिकारक :- ऊंटकटेरा का अधिक मात्रा में उपयोग मस्तिष्क के लिए हानिकारक होता है।
दोषों को दूर करने वाला : ऊंटकटेरा के दोषों को दूर करने के लिए सिरका का उपयोग किया जाता है।
तंत्र — (१) ऊँट कटारा— की जड़ पुष्प नक्षत्र में लकड़ी की नोक से खोदकर लाएँ ७ शाखाओं वाली जड़ सर्वश्रेष्ठ होती है इसे सोने की ताबीज में गले में बाँधने से सब बाधाएँ दूर होती हैं। दरिद्रता दूर होती है।
(२) राजनीति में सफलता के लिये भी इसी प्रकार ऊँटकटारा की जड़ धारण की जाती है। सूर्य मन्त्र का जप आवश्यक है।
ऊँटकटेरा के क्षुप (झाड़ीनुमा पौधे) जंगलों में होते हैं इसकी टहनियां (डाल), फल और पत्ते सभी पर तेज कांटे होते हैं। ऊँटकटेरा वृक्ष की सभी टहनियों के ऊपर गोल फल होते हैं जो चारों तरफ करीब एक-एक इंच लंबे कांटों से भरा होता है। यह घरेलू जानवरों की बीमारी में विशेष रूप से प्रयोग की जाती है। इसकी शाखाएं जड़ से फूटती है । यह सूरजमुखी कुल का, सीधे तने वाला, काँटों से भरा हुआ, १-२ फुट की ऊँचाई वाला पौधा है। इसकी पत्तियां सत्यानाशी के पौधे जैसे ही फैली हुए और कांटेदार होती हैं। यह बहुशाखीय है । ऊँटकटारा के ढोढे होते हैं जिनपर कांटे होते हैं। इस पर नीले-बैंगनी रंग के छोटे-छोटे फूल गुच्छों में आते हैं। इसकी मूसला जड़ भूमि में बहुत अन्दर तक धंसी रहती हैं।
आयुर्वेद चिकित्सा में जड़ की छाल का चूर्ण अधिकतर प्रयोग में लिया जाता है | इसके पीले रंग के डोडे लगते हैं, जिन पर कांटे होते हैं । इस वनस्पति को ऊँट बहुत-बहुत प्रेम से खाते हैं । यह पौधा मध्य भारत मालवा मारवाड़ संयुक्त प्रांत तथा दक्षिण में रेतीले प्रदेशों, बंजर खेतों मैदानों में पायी जाती है।
रासायनिक संरचना - कई सक्रिय घटकों में से, एपिगेनिन, एपिगेनिन -7-ओ-ग्लूकोसाइड, इचिनाटिनिन, 5,7-डायहाइड्रोक्सी -8,4'-डायमेथॉक्सी-फ्लैवनोन -5-ओ-एल्फा-एल-हृनमोपाइरानोसील-7-ओ-बीटा-डी -र्बिनोपीरानोसिल- (1 → 4) -ओ-बीटा-डी-ग्लुकोपाइरानोसाइड है।
संस्कृत – उष्टकंटक, कंतफल, कर्भादन, वृत्तगुच्छ
बंगाली – ठाकुरकांटा
मराठी – ऊँटकटीरा
अरबी – स्तरखर
गुजराती – शुलियों
कन्नड़– ब्रह्मदण्डी Brahmadande
तेलुग– ब्रह्मदण्डी
अंग्रेजी – Indian globe thistle, Camel’s thistle
लेटिन – Echinops Echinatus
ऊँटकटारा का वैज्ञानिक वर्गीकरण
किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
सबक्लास Subclass: एस्टीरिडेएइ Asteridae
आर्डर Order: ऐस्टेरेल्स Asteridae
परिवार Family: Asteraceae – Aster family
जीनस Genus: एकिनोप्स Echinops
प्रजाति Species: एकिनोप्स एकिनाटस Echinops echinatus
यूनानी मत:- यूनानी मत से यह वनस्पति कड़वी अग्निवर्धक और ज्वर नाशक है । यकृत को उत्तेजना देने वाली और क्षुधा-वर्धक है । आंखों की तकलीफ, जीर्ण ज्वर, जोड़ों के दर्द और मस्तक की बीमारियों में भी यह लाभदायक है l यह शुक्राणु हीनता की समस्या का सबसे प्रभावशाली समाधान है यह वीर्यवर्धक एवं जोश-वर्धक है । इससे नपुंसकता दूर होती है । इसकी जड़ कामोद्दीपक पौष्टिक और मूत्र निस्सारक (Diuretic) होती है l
सिद्ध उपयोग:--
प्रमेह – शुक्रमेह :- ऊँटकटारा की जड़ की छाल ३ माशे, गोखरू 3 माशे और मिश्री ६ माशे लेकर – इन तीनो का बारीक़ चूर्ण करके सवेरे एवं शाम दूध के साथ सेवन करने से प्रमेह की समस्या का नाश होता है ।
गठिया रोग :- ऊँटकटेरा की जड़ का रस 10 से 20 मिलीलीटर रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से गठिया रोग ठीक होता है ।
मंदाग्नि :- इसकी जड़ की छाल का चूर्ण और छुहारे की गुठली का चूर्ण 3 – ३ माशे लेकर फंकी लेने से मंदाग्नि में लाभ होता है ।
खांसी :- इसकी छाल के चूर्ण को पान में रखकर खाने से कफ की खांसी नष्ट होती है ।
मूत्रकृच्छ :- ताल मखाना और मिश्री के साथ इसकी जड़ की छाल का मिश्रण देने से मूत्र जलन मूत्रकृच्छ (पेशाब का रुक – रुक कर आना) में लाभ होता है l
शीघ्रपतन एवं पौरुष वृद्धि :- १॰ इसकी जड़ की छाल १ तोला ले कर उसे कुचल कर पोटली में बांधकर आधा सेर गाय का दूध और एक सेर पानी में खौलाएं लें उसमें चार खारक (छुहारा) भी डाल दें जब पानी में जलकर दूध मात्र रह जाए, तब उस पोटली को मिलाकर फेंक दें और उस दूध को गुनगुना कर पीयें । यह दूध अत्यंत काम-शक्ति-वृद्धि-वर्धक होता है ।
२॰ लगभग 5 ग्राम की मात्रा में ऊंटकटेरा की जड़, 3 ग्राम की मात्रा में अकरकरा और 3 ग्राम की मात्रा में असगन्ध को लेकर तथा इसको पीसकर हलवा में मिलाकर सेवन करने से सम्भोग की क्षमता बढ़ती है।
३॰ ऊँटकटारे की जड़ की छाल को पीसकर एवं छानकर रख लेना चाहिए । इस चूर्ण में 'मुगली वेदाना' एक तोला छानकर एवं इसके चूर्ण में मिलकर पीना चाहिए । इस योग के सेवन से पुराने से पुराना प्रमेह मिटता है एवं वीर्य की वृद्धि होती है ।
लिंग (पुरुष जननांग के दोषों को दूर करना) :- लिंग की इन्द्रियों के दोषों को दूर करने के लिए 3 ग्राम ऊंटकटेरा की जड़ के छिलके को 15 मिलीलीटर पानी में पीसकर लिंग पर मालिश करने से लाभ मिलता है।
शरीर को शक्तिशाली बनाना :- ऊंटकटोरे के ऐसे पौधे को जड़ सहित उखाड़कर जिसमें फल और फूल हो, छाया में सुखा लें और इसके पञ्चांग का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को लगभग 5 ग्राम रात को सोते समय दूध के साथ लेने से व्यक्ति के शारीरिक बल में वृद्धि होती है ।
कमजोरी :- 5-10 मिलीलीटर ऊंटकटेरा की जड़ (मूल) का रस सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है। इससे शरीर मजबूत बनता है ।
सर्पदंश एवं बिच्छुदंश :- सर्प एवं बिच्छु के दंश में ऊंटकटारा की जड़ को पानी में घिस कर लगाने एवं पीने से जहर उतरने लगता है ।
प्रसव :- प्रसव काल में समय पर जब कोई स्त्री भयंकर रूप से कष्ट पा रही हो और अनेक उपचार करने पर भी उसका प्रसव ना होता हो, उस समय मैं इसकी जड़ को पानी के साथ घिसकर १ तोला भर की मात्रा में पिलाने से तुरंत प्रसव हो जाता है ।
गर्भनिवारक :- ऊंटकटेरा को पीसकर स्त्री के सिर, तालु में लेप करने से बच्चे का जन्म तुरन्त हो जाता है। बच्चा होने के तुरन्त बाद इस दवा को तुरन्त निकालकर फेंक देना चाहिए, क्योंकि इससे हानि होने की आशंका होती है। यह गर्भ तक को बाहर निकाल देती है ।
गर्भपात :- ऊंटकटेरा की जड़ को पानी में पीसकर पेडू (नाभि) पर लेप कर दें। गर्भ गिरने पर लेप को तुरन्त पानी से धो देना चाहिए ।
रसायन मिश्रण :- ऊंटकटारे की जड़ की छाल पीस छानकर उसका चूर्ण करके रख देना चाहिए । फिर मोगली बेदाना एक और मिश्री 2 तोला इन सब को रात्रि के समय पाव भर पानी में भिगो देना चाहिए । सवेरे उस पानी को छानकर उसमें उपर्युक्त चूर्ण 3 माशे की मात्रा में डालकर पी लेना चाहिए । इस योग के सेवन से पुराना प्रमेह और सुजाक, मूत्र जलन, नष्ट होकर वीर्य वृद्धि और पौरुष वृद्धि होती है l
योग ऊंट कटारा :- मस्तगी रूमी, सालम पंजा, मोती पिष्टी ,मकरध्वज, स्वर्ण भस्म, रजत भस्म, सकाकुल, अजवाइन खुरासानी, हरमल, मोमियाई, अंबर, केसर, सफेद मूसली का रस, अश्वगंधा के पत्तों का रस, पारे की ७ भावनाएं लगाकर ऊंट कटारा योग तैयार करें ।
सुबह शाम एवं रात को एक एक चम्मच दूध के साथ सेवन करें । यह योग अत्यंत प्रभावशाली है ,काम शक्ति बढ़ाता है । नपुंसकता दूर करता है । लिंग को कठोर करता है। वीर्यवर्धक है ।
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क्या नहीं खाना है यह महत्वपूर्ण है।
1) चाय
2) कौफी़
3) कोल्ड ड्रिंक
4) तेल मसालेदार
4) रिफाइंड तेल
5) सभी प्रकार की खटटी चीजें
6) अण्डा और मछली ( तबतक न खाएँ जबतक कि पूरी तरह से ठीक न हो जाएँ।
7) किसी प्रकार का पान मसाला, गुटखा, बियर, पैक, शराब नहीं लेना।
8) मैदे से बनी चीजें
9) मिठाई और वह सभी बाजार में मिलने वाली चीजें जो गीली होती हैं और डब्बा बंद मिलती हैं।
क्या खाएँ यह महत्वपूर्ण है।
1) दूध
2) दही
3) घी
4) मखाना
5) काजू
6) अखरोट
7) पिस्ता
8) खस्सी( बकरा)का मांस
9) मुर्गा का मांस
10) बैंगन 🍆और कटहल को छोड़कर सभी प्रकार की सब्जियाँ खा सकते हैं।
11) पनीर खाएँ
अमुल या सुधा कम्पनी का ही लें
12) सरसों तेल या घी में बना खाना ही खाएँ
13) रोटी ही खाएँ यदि चावल खाने की इच्छा हो फिर घी में पुलाव बनाकर उपयोग करें।
14) लस्सी पी सकते हैं
15) खाने में दही भी डालकर खाएँ
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