गुग्गुल या 'गुग्गल'
गुग्गुल या 'गुग्गल' एक वृक्ष है। इससे प्राप्त राल जैसे पदार्थ को भी 'गुग्गल' कहा
जाता है। भारत में इस जाति के दो प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं। एक को कॉमिफ़ोरा
मुकुल (Commiphora mukul) तथा दूसरे को कॉ. रॉक्सबर्घाई (C. roxburghii) कहते हैं।
अफ्रीका में पाई जानेवाली प्रजाति कॉमिफ़ोरा अफ्रिकाना (C. africana) कहलाती है।
यह मूल रूप से एशिया व अफ्रीका का पौधा है। यह भारत के उष्णकटिबंघीय क्षेत्रों, बांग्लादेश, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और प्रशांत महासागर में पाया जाता है। भारत में यह म.प्र., राजस्थान, तमिलनाडु, आसाम, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में पाया जाता है। मध्यप्रदेश में यह ग्वालियर और मुरैना जिलों में पाया जाता है। गुग्गुल राजस्थान में अधिक मात्रा में पाई जाती है यह पूरे भारत में पाई जाती है। वैसे आबू पर्वत पर पैदा होने वाला गुग्गुल अच्छा सबसे अच्छा माना जाता है। इसका पेड़ 120 सेंटीमीटर से लेकर 360 सेंटीमीटर तक ऊंचा होता है। गुग्गुल की शाखाओं पर कांटें लगे होते हैं। शाखाओं की टहनियों पर भूरे रंग का पतला छिलका भी होता है जो उतरता हुआ नज़र आता है। गुग्गुल की छाल हल्की हरी तथा पीलापन लिए हुए चमकीली और परतदार होती है। गुग्गुल के पत्ते नीम के पत्ते के समान छोटे-छोटे, चमकीले, चिकने व आपस में मिले हुए होते हैं। इसके फल बेर के समान लंबे, गोल, तीन धार वाले तथा लाल रंग के होते हैं। गुग्गुल के फूल लाल रंग के छोटे, पंचदल युक्त होते हैं। पेड़ से डालियों से जो गोंद निकलता है, उसे गुग्गुल कहते हैं। इसमें रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के गुण पाये जाते हैं। जो गुग्गुल चिकना हो, स्वर्ण के समान रंग वाला हो, पकी जामुन के समान स्वरूप वाला हो और पीला हो वही गुग्गुल अधिक लाभकारी होता है।
यह मूल रूप से एशिया व अफ्रीका का पौधा है। यह भारत के उष्णकटिबंघीय क्षेत्रों, बांग्लादेश, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और प्रशांत महासागर में पाया जाता है। भारत में यह म.प्र., राजस्थान, तमिलनाडु, आसाम, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में पाया जाता है। मध्यप्रदेश में यह ग्वालियर और मुरैना जिलों में पाया जाता है। गुग्गुल राजस्थान में अधिक मात्रा में पाई जाती है यह पूरे भारत में पाई जाती है। वैसे आबू पर्वत पर पैदा होने वाला गुग्गुल अच्छा सबसे अच्छा माना जाता है। इसका पेड़ 120 सेंटीमीटर से लेकर 360 सेंटीमीटर तक ऊंचा होता है। गुग्गुल की शाखाओं पर कांटें लगे होते हैं। शाखाओं की टहनियों पर भूरे रंग का पतला छिलका भी होता है जो उतरता हुआ नज़र आता है। गुग्गुल की छाल हल्की हरी तथा पीलापन लिए हुए चमकीली और परतदार होती है। गुग्गुल के पत्ते नीम के पत्ते के समान छोटे-छोटे, चमकीले, चिकने व आपस में मिले हुए होते हैं। इसके फल बेर के समान लंबे, गोल, तीन धार वाले तथा लाल रंग के होते हैं। गुग्गुल के फूल लाल रंग के छोटे, पंचदल युक्त होते हैं। पेड़ से डालियों से जो गोंद निकलता है, उसे गुग्गुल कहते हैं। इसमें रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के गुण पाये जाते हैं। जो गुग्गुल चिकना हो, स्वर्ण के समान रंग वाला हो, पकी जामुन के समान स्वरूप वाला हो और पीला हो वही गुग्गुल अधिक लाभकारी होता है।
जगत:
|
पादप
|
अश्रेणीत:
|
एंजियोस्पर्म्
|
अश्रेणीत:
|
यूडिकॉट्स
|
अश्रेणीत:
|
रोज़िड्स
|
गण:
|
सैपिन्डेल्स
|
कुल:
|
बुर्सरेसी
|
वंश:
|
कॉमिफ़ोरा
|
जाति:
|
C. wightii
|
द्विपद नाम
|
Commiphora wightii
|
|
(आर्न.) भण्डारी
|
पर्यायवाची
|
कॉमिफ़ोरा मुकुल (Stocks) Hook.
|
विभिन्न भाषाओं में नाम :-
संस्कृत
|
गुग्गुल।
|
हिन्दी
|
गुग्गुल।
|
अंग्रेजी
|
इण्डियन बेदेलियम।
|
मराठी
|
गुग्गुल।
|
गुजराती
|
गुग्गुल।
|
कन्नड़
|
गुग्गुल।
|
बंगाली
|
गुग्गुल।
|
तेलगू
|
महिषाक्षी।
|
अरबी
|
मुश्किले, अर्जक।
|
फारसी
|
बोएजहुदान।
|
लैटिन
|
कोमिफोरा मुकुल।
|
स्वरूप :-
यह एक झाड़ीनुमा पौधा है, जिसकी छाल कठोर होती है। शाखायें श्वेत, मुलायम और
सुगंधित होती है। शाखायें मुडी हुई, गांठेदार, शीर्ष की ओर नुकीली और राख के रंग की
होती है। तनों पर कागज जैसी एक पतली झिल्ली होती है। पत्तियाँ छोटे-छोटे नीम के
पत्तों के समान, चिकनी व सपत्र होती है, जिसमें 1-3 पत्रक होते है। इसके फूल उभलिंगी
या द्विलिंगी (unisexual or bisexual) होते हैं जो कि समूह के रूप में
बिल्कुल छोटे-छोटे पांच पंखुड़ी वाले पाए जाते हैं। भूरे से गहरे लाल रंग के
होते है। फूल जनवरी – मार्च माह में आते है। फल अण्डाकार, 6-8 मिमी व्यास के होते
है और पकने पर लाल और दो भागों में टूट जाते है।
इसके फल छोटे-छोटे बेर के समान तीन धार वाला होता है जिसे गुलिया कहा जाता है।
फल मार्च – मई माह में आते है। इसके फल पेट दर्द को दूर करने में लाभकारी है।
प्रकृति :- गुग्गुल कटु तिक्त तथा उष्ण है और कफ, बात, कास,
कृमि, क्लेद, शोथ और अर्श नाशक है।
यूनानी मतानुसार : गुग्गुल तीसरे दर्जे का गर्म प्रकृति वाला एवं
सूखा फल होता है। यह वायु को नष्ट करने वाला, सूजन को दूर करने वाला, दर्द को नष्ट
करने वाला, पथरी, बवासीर, पुरानी खांसी, फेफड़ों की सूजन, विष को दूर करने वाला, काम
की शक्ति बढ़ाने वाला, टिटनेस, दमा, जोड़ों का दर्द तथा जिगर के रोग आदि प्रकार के
रोगों को ठीक करने वाला होता है।
रासायनिक विश्लेषण :-
गुग्गुल में सुगंधित तेल 1.45 प्रतिशत, गोंद 32 प्रतिशत और
ग्लियोरेजिन, सिलिका, कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा लोहा आदि भी इसमें कुछ मात्रा में
पाये जाते हैं। इनके अन्य घटको में इनोसिटोल हैक्साइनासिनेट (inositol
hexaniacinate), क्रोमियम, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं। एक अन्य
रासायनिक घटक गुग्गुलुस्टीरॉन भि पाया जाता है, जो लिवर में कोलेस्ट्रॉल संश्लेषण
को कम करता है।
गुण : गुग्गुल पित्त को उत्पन्न करने वाला, दस्त को ठीक
करने वाला होता है। यह गर्म, रूखा व हल्का होता है। टूटी हड्डी को जोड़ने का गुण इसमें
पाया जाता है। यह वीर्य उत्पन्न करने वाला तथा गला को साफ करने वाला उत्तम रसायन
होता है। गुग्गुल अग्निदीपक (भूख को बढ़ाने वाला), बल को बढ़ाने वाला होता है। घाव,
मोटापा, प्रमेह, पथरी आदि रोग को ठीक करने में यह लाभकारी है। गुग्गुल कोढ़, आमवात (जोड़ों
का दर्द), सूजन और बवासीर को नष्ट करता है। गुग्गुल में मीठा रस होने से यह वात को
तथा कषैले रस होने से पित्त को और तीखा रस होने से कफ को नष्ट करता है। पेचिश, भुख
का कम लगना, कब्ज, बवासीर, पेट में कीड़े होना आदि रोगों में गुग्गुल लाभकारी होता
है। कामोत्तेजक (सहवास शक्ति) अधिक होने के कारण आई नपुंसकता (नामर्दी), शुक्र (शुक्राणु)
दुर्बलता की कमजोरी को दूर करने के लिए गुग्गुल का प्रयोग करना चाहिए। गुग्गुल में
गर्भाशय की नाड़ियों को बल देने का गुण होने के कारण से बांझपन को दूर करने में
लाभकारी है।
गुग्गुल पांच प्रकार का होता है :
1.
महिषाक्ष: महिषाक्ष गुग्गुल कोयले के रंग का होता है। इस गुग्गुल
को भैंसा गुग्गुल भी कहते हैं।
2.
महानील: महानील गुग्गुल बहुत ही गाढ़े और नीले रंग का होता है।
3.
कुमुद: कुमुद गुग्गुल कुमुद के फूल के रंग के समान होता है।
4.
पद्य: पद्य गुग्गुल माणिक्य के समान लाल रंग का होता है।
5.
हिरण्य: हिरण्य गुग्गुल सोने के
समान रंग वाला महिषाक्ष और महानील गुग्गुल हाथियों के लिए लाभकारी होता है। यह
गुग्गुल घोडों के रोग दूर करने वाला होता है और मनुष्यों के लिए हिरण्य नाम वाला ही
गुग्गुल लाभदायक और हितकारी होता है लेकिन कुछ चिकित्सा आचार्यों के अनुसार
महिषाक्ष को भी मनुष्यों के लिए उपयोगी माना जाता है।
शुद्ध करने की क्रिया :-
-
यह एक प्रकार की गोंद होती है जिसे विशेष रूप से सर्दियों (winter) के मौसम में निकाला जाता है। इस गोंद को पारंपरिक रूप से उपयोग करने से पहले शुद्ध किया जाता है। इसके लिए गोंद को मोटे-मोटे कपड़े के थैलों (bag of thick) में रखकर इसे शुद्ध पानी में उबाला जाता है जब तक की यह काढ़े के रूप में नरम न हो जाए। इसके बाद इसे लकड़ी के बोर्ड जिस पर घी की परत हो विशेष रूप से मक्खन लगा हो (clarified butter) उस पर खुली हवा में सुखाया जाता है और फिर इसे घी में फ्राई कर पाउडर बना लिया जाता है जिसे विभिन्न औषधियों में उपयोग किया जाता है।
-
गुग्गुल के टुकड़े-टुकड़े करके मिलाया जाता है और त्रिफला के काढ़े में विशेषकर दूध में डालकर पकाया जाता है, इससे गुग्गुल शुद्ध हो जाता है।
-
गिलोय के काढ़े में गुग्गुल को मिलाकर छानने और सुखा देने से गुग्गुल शुद्ध होता है।
गुग्गुल का आध्यात्मिक
महत्त्वः-
No comments:
Post a Comment