देवदारु
देवदार (वैज्ञानिक नाम:सेडरस डेओडारा, अंग्रेज़ी: डेओडार, उर्दु: ديودار देओदार; संस्कृत: देवदारु) एक सीधे तने वाला ऊँचा शंकुधारी पेड़ है, जिसके पत्ते लंबे और कुछ गोलाई लिये होते हैं। देवदार साधारणत: ढाई से पौने चार मीटर के घेरे वाले पेड़ है, जो वनों में बहुतायत से मिलते हैं, पर 14 मीटर के घेरे वाले तथा 75 से 80 मीटर तक ऊँचे पेड़ भी पाए जाए हैं। देवदार एक बहुत बड़ा लंबा और सीधा पेड़ है। देवदार का तना बहुत मोटा और पत्ते हल्के हरे रंग के मुलायम और लंबे होते हैं। लकड़ी पीले रंग की सघन, सुगंधित, हल्की, मजबूत और रालयुक्त होती है। राल के कारण कीड़े और फफूँद नहीं लगते और जल का भी प्रभाव नहीं पड़ता, लकड़ी उत्कृष्ट कोटि की इमारती होती है।
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
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जगत: | पादप |
विभाग: | पाइनोफाइटा |
वर्ग: | पाइनोप्सीडा |
गण: | पिनालेस |
कुल: | पिनेसी |
वंश: | सेडरस |
जाति: | C. deodara |
द्विपद नाम | |
Cedrus deodara (रॉक्सब.) जॉर्ज डॉन |
देवदार सामान्यतः वर्ष भर हरा-भरा रहता है परन्तु इसकी नई पत्तियाँ मार्च से मई तक आती हैं तथा पुरानी पत्तियाँ झड़ जाती हैं। देवदार के वृक्ष में नर मादा पुष्प एक ही वृक्ष पर अलग अलग शाखों पर पाये जाते हैं। इसके नर पुष्प जून में आते हैं तथा सितंबर - अक्टूबर तक परिपक्व होकर परागकण छोड़ देते हैं जबकि छोटे मादा पुष्प शंकु अगस्त में आते हैं तथा इनका परागण सितंबर - अक्टूबर में होता है। ये शंकु अगले वर्ष जून - जुलाई तक पूर्ण आकार ले लेते हैं तथा इनमें पंख सहित बीज छिपे होते हैं। देवदार के वृक्ष सूखा सहन नहीं कर सकते परन्तु पाल तथा तेज हवाओं को सह जाते हैं। देवदार के वनों की हानि आमतौर पर बर्फ गिरने एवं आग लगने से होती है। जबकि जानवरों की चराई से इसके पुनर्जनन क्षमता में कमी आती है। देवदार को सीधे बुआई अथवा रोपनी में तैयार पौधों से उगाया जा सकता है। इसके शंकुओं से अक्टूबर-नवंबर में बीज एकत्रित किये जाते हैं, एक किलो में तक़रीबन ७००० - ८००० बीज होते हैं तथा इनकी अंकुरण क्षमता ७०-८० प्रतिशत होती है। इसकी रोपणी में तैयार ढाई से ३ वर्षीय पौधे जुलाई - अगस्त में रोपे जाते हैं।
इसके तीन प्रकार होते हैं.
तैलीय देवदारू- ये पकने पर तीक्ष्ण, चिकने, गर्म, कडुवा और लघु होता है। कफ, अर्स, स्वास, मूर्छा, हिचकी, रक्तदोष, सूजन आदि में उपयोग किया जाता है.
काष्ठ देवदारू- यह गर्म, कड़ुवा तथा रूक्ष होता है। गैस, भूतबाधा, भूख में उपयोगी होता है.
सरल देवदारू- यह तीखा, कडुवा, मधुर, गर्म, लघु तथा स्निग्ध होता है । कुष्ठ रोग, नेत्र रोग, सूजन, जुओं आदि में उपयोगी है.
देवदार (Cedar) के और भी नाम हैं – दरूभद्द्र, शजर, शजरतुलजीन आदि
उपयोग
रेल की पटरियाँ, फर्नीचर, मकान के दरवाज़े और खिड़कियाँ, अलमारियाँ इत्यादि भी बनती हैं।
इस पर रोगन और पालिश अच्छी चढ़ती है।
इसकी लकड़ी से पेंसिल भी बनती है।
इसकी छीलन और बुरादे से, ढाई से लेकर चार प्रतिशत तक, वाष्पशील तेल प्राप्त होता है, जो सुगंध के रूप में 'हिमालयी सेडारवुड तेल' के नाम से व्यवहृत होता है।
तेल निकाल लेने पर छीलन और बुरादा जलावन के रूप में व्यवहृत हो सकते हैं।
देवदार की लकड़ी का उपयोग आयुर्वेदीय ओषधियों में भी होता है।
भंजक आसवन से प्राप्त तेल त्वचा रोगों में तथा भेड़ और घोड़ों के बालों के रोगों में प्रयुक्त होता है।
इसके पत्तों में अल्प वाष्पशील तेल के साथ साथ ऐस्कौर्बिक अम्ल भी पाया जाता है।
देवदार की छाल के पाउडर का प्रयोग कई तरह के सप्लीमेंट बनाने में भी किया जाता है। यह एक प्रकार का नैचुरल एंटीऑक्सीडेंट भी है। इसका प्रयोग कई बीमारियों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। यह संक्रमण से भी बचाता है।
1.आंखों की रोशनी बढ़ती है-</strong> आंखों की रोशनी उम्र के साथ-साथ कम होती जाती है। लेकिन देवदार के बीजों में मौजूद बीटा-कैरोटीन आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए काफी फायदेमंद होता है।
2. डायबिटीज की समस्या के लिए कारगर-</strong> डायबिटीज की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए भी यह काफी लाभकारी होता है। देवदार के बीज ग्लूकोज और बुरे कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने के लिए काफी मददगार होते हैं ।
3. दिल के लिए फायदेमंद- देवदार के बीजो में विटामिन ई और विटामिन के पर्याप्त मात्रा में होते हैं। इसमें मौजूद मैग्नीशियम ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं जिससे हार्ट अटैक का खतरा भी कम हो जाता है।
4. बालों के लिए फायदेमंद- देवदार के बीजों में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में होता है इनका सेवन करने से बाल खूबसूरत बनते हैं। मसल्स बनाने के लिए यह काफी फायदेमंद होता है।
5.हड्डियां मजबूत बनती है- देवदार के बीज में कैल्शियम भी होता है इसलिए इनका सेवन करने से हड्डियां मजबूत बनती हैं। देवदार के बीजों को रोजाना अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं।
6. कान की सबसे सामान्य समस्या है सुनने की क्षमता का ह्रास होना। चोट लगने या फिर दवाओं के संक्रमण से सुनने की क्षमता प्रभावित हो जा सकती है। इसके कारण ही वेस्टीब्यूबलोकोक्लीयर (vestibulocochlear) नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है और इसके कारण दिमाग को सही संदेश नहीं मिल पाते जिससे सुनने में कठिनाई होती है। ऐसे में एंटीऑक्सीडेंट युक्त देवदार की छाल फायदा पहुंचाती है। यह प्राकृतिक औषधि है जो सुनने की क्षमता को बढ़ाती है।
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