Wednesday, December 5, 2018

श्रीवत्स


श्रीवत्स
श्रीवत्स चिह्न का हिन्दु, बोद्ध तथा जैन धर्मावलम्बियों में विशेष महत्त्व है। श्री + वत्स का अर्थ होता है -लक्ष्मी पुत्र ।
श्रीवत्स का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत में हुआ है। महाभारत शान्ति पर्व के अनुसार यह भगवान नारायण के वक्ष:स्थल में भगवान शंकर के त्रिशूल से बना चिह्न है। [महाभारत शान्ति पर्व 342.134]
भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार यह अगूँठे के बराबर सफेद बालों का एक समूह है, जो भगवान विष्णु के वक्ष:स्थल पर है और दक्षिणावर्त्त भौंरी के आकार का कहा गया है।
इसे भृगु ऋषि का पद चिह्न माना जाता है।[भागवत तथा विष्णु पुराण 10.89.9-12]

एक बार सरस्वती के निकट निवास करने वाले तापसों ने ब्रह्मा, विष्ण, शिव- इन त्रिदेवों में कौन अधिक सत्त्वशाली है, इसकी परख करने के लिए भृगु मुनि को भेजा। भृगु मुनि पहले ब्रह्मा के पास गये। वहाँ इनके प्रणाम न करने से ब्रह्मा को क्रोध आया, परंतु तुरंत ही उन्होंने उसे दबा दिया। तब भृगु जी शिव जी के निकट गये। शिव जी भी अनादर करने के कारण मुनि को मार डालने के लिए उद्यत हो गये, परंतु गिरिजा ने उन्हें पकड़ लिया। तत्पश्चात् वे आपके समीप गये। उस समय आप लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर शयन कर रहे थे। तब उन विप्रवर ने आप कमलनयन की छाती में चरण-प्रहार किया। जिससे आप परंतु ही उठ पड़े और हर्षपूर्वक यों कहने लगे- ‘मुनिश्रेष्ठ! मेरे सब अपराधों को क्षमा कर दीजिए। आज से आपका यह चरण चिह्न मेरे वक्षःस्थल पर श्रीवत्स नामक आभूषण होकर सदा विराजमान रहेगा।’ [नारायणीयम पृ. 412]
विष्णु के वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि एवं श्रीवत्स चिह्न विद्यमान कहा जाता है। इनका क्या अर्थ हो सकता है। मणि दर्पण का प्रतीक होती है। देह में जहां – जहां ग्रन्थि होती हैं, वे मणिरूप होती हैं। कथन है कि इन मणियों द्वारा सूक्ष्म नाडियों की क्या स्थिति है, इसका दर्शन किया जा सकता है। अतः यह मणियां दर्पण रूपा होती हैं। कौस्तुभ मणि एवं श्रीवत्स चिह्न में क्या अन्तर है। विष्णु पुराण के अनुसार कौस्तुभ मणि निर्लेप, अगुण, अमल आत्मा का प्रतीक है। एवं श्रीवत्स अनन्त का प्रतीक है। छान्दोग्य ब्राह्मण का कथन है कि श्रीवत्स विश्वकर्मा का रूप है। अन्यत्र (सीतोपनिषद) उल्लेख है कि श्रीवत्स इच्छाशक्ति का प्रतीक है। लक्ष्मीनारायण संहिता के अनुसार श्रीवत्स कल्पवृक्ष का स्वरूप है। यह सब संदर्भ संकेत देते हैं कि बीजरूप में जो इच्छा शक्ति विद्यमान है, श्रीवत्स उस इच्छा को मूर्त्त रूप प्रदान करने का साधन है।
'श्रीवत्स' चिन्ह
प्रतिमा की छाती (वक्ष) पर चार पंखुड़ी का एक फूल-सा बना होता हैं | यह चिन्ह तीर्थंकरो के एक हजार आठ शुभ चिन्हों में से श्रीवत्स नाम का चिन्ह हैं | श्री का अर्थ हैं लक्ष्मी एवं वत्स का अर्थ हैं पुत्र अर्थात जिनको अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख एवं अनन्तवीर्य रूप अंतरंग अनंत चतुष्टय लक्ष्मी प्राप्ती हुई है एवं बहिरंग में भी समवशरण आदि लक्ष्मी से शोभायमान है, 'श्रीवत्स' चिन्ह यानि लक्ष्मीपुत्र, नियम से तीर्थकरों के होता है |

ज्योतिष में आन्दादियोगान्तर्गत आठवाँ योग "श्रीवत्स" है। रविवार को पुष्य (8), सोमवार को उत्तराफाल्गुनी (12), मंगलवार को विशाखा (16), बुधवार को पूर्वाषाढ़ा (20), गुरुवार को धनिष्ठा (24), शुक्रवार को रेवती (28) तथा शनिवार को यदि रोहिणी (4) नक्षत्र हो तो श्रीवत्स नाम का योग होता है, जो सौभाग्य तथा संपत्ति प्रदान करने वाला योग माना जाता है।


संदर्भाः-
श्रीवत्सः श्रीयुक्तं वत्सं वक्षो यस्य। विष्णुः। स तु वक्षस्य शुक्लवर्णदक्षिणावर्त्तलोमावली। यथा रघुः १०।१०
प्रभानुलिप्तश्रीवत्सं लक्ष्मीविभ्रमदर्पणम्।
कौस्तुभाख्यमपांसारं बिभ्राणं बृहतोरसा।।
श्रीवत्सो वक्षस्यनन्यमहापुरुषलक्षणं श्वेतरोमावर्त्तविशेषः।
श्रीवत्सो हृत्सङ्गतमणिविशेषः कौस्तुभवदिति कृष्णदासः। - शब्दकल्पद्रुमः
इदमहमिमं विश्वकर्माणं श्रीवत्समभि जुहोमि स्वाहा ।। १० ।। - छान्दोग्य ब्राह्मणम् २.६.१०
[ गो गृ ४ ८ १९, खा गृ ४. ३. ७ द्रः]
निगदोऽयं पण्यलाभकामस्य होमे विनियुक्तो विश्वकर्मदेवताकः ।
इमं विश्वकर्माणं विश्वस्योत्पत्तिपालनविनाशाः कर्म व्यापारो यस्य स विश्वकर्मा जगतः स्रष्टा तं विश्वकर्माणम् । श्रीवत्सं श्रीः वत्स इव मातुर्नित्यं लग्ना यस्य तत्तथोक्तम् । अभि आभिमुख्येन गत्वा प्रसाद्याहं पण्यलाभकाम इदं द्रव्यं जुहोमि त्यजामि स्वाहा ।।१०।।
श्रीवत्सोऽभूत् कल्पवृक्षः कार्तिकश्चम्पको ह्यभूत् ।
नारदोऽभूत्पारिजातो गौरी वृन्दाऽभवत्तदा ।। ९३ ।। - लक्ष्मीनारायण संहिता १.४४१.९३
आत्मानमस्य जगतो निर्लेपमगुणामलम् ।
बिभर्ति कौस्तुभमणिस्वरूपं भगवान्हरिः ॥ १,२२.६८ ॥
श्रीवत्ससंस्थानधरमनन्तेन समाश्रितम् ।
प्रधानं बुद्धिरप्यास्ते गदारूपेण माधवे ॥ १,२२.६९ ॥ विष्णुपुराणम्
श्रीवत्स अग्नि २५.१४(श्रीवत्स पूजा हेतु बीज मन्त्र), भागवत ६.८.२२(श्रीवत्स धारी विष्णु से अपर रात्र में रक्षा की प्रार्थना), वामन ८२.१८(श्रीदामा असुर की विष्णु के श्रीवत्स हरण की इच्छा), ९०.१८(उदाराङ्ग तीर्थ में विष्णु का श्रीवत्साङ्क नाम से वास), विष्णु १.२२.६९(श्रीवत्स का प्रतीकार्थ - अनन्त), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९३(कल्पवृक्ष का रूप), २.१४०.२४(श्रीवत्स प्रासाद के लक्षण), २.१७६.१७(ज्योतिष में योग ), सीतोपनिषद (विष्णु में इच्छा शक्ति का प्रतीक) shreevatsa/ shrivatsa


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