Friday, December 7, 2018

दूब (दुर्वा)


दूब (दुर्वा) 
सामान्य नाम: दूब घास
वैज्ञानिक नाम: साइनोडान डेक्टीलान(Cynodon dactylon)
Scientific classification
Kingdom: Plantae
Clade: Angiosperms
Clade: Monocots
Clade: Commelinids
Order: Poales
Family: Poaceae
Genus: Cynodon
Species: C. dactylon
Binomial name
Cynodon dactylon
(L.) Pers.
विवरण: हिंदी में इसे दूब, दुबडा, संस्कृत में दुर्वा, सहस्त्रवीर्य, अनंत, भार्गवी, शतपर्वा, शतवल्ली, मराठी में पाढरी दूर्वा, काली दूर्वा, गुजराती में धोलाध्रो, नीलाध्रो, अंग्रेजी में कोचग्रास, क्रिपिंग साइनोडन, बंगाली में नील दुर्वा, सादा दुर्वा आदि नामों से जाना जाता है। मारवाडी भाषा में इसे ध्रो कहा जाता हैँ। यह वर्ष भर पाया जाने वाला एक बहुवर्षीय पौधा है जो सभी प्रकार की भूमियों में सारे देश में समान रूप से पाया जाता है। इसके नए पौधे तनों, बीजों तथा भूमीगत तनों से पैदा होते है। वर्षाकाल में इसकी वृद्धि अधिक होती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फरवरी-मार्च में इसके पौधों पर फूल आते है। दूब का पौधा सभी फसलो में समान रूप से प्रतिस्पर्धा करता है परन्तु फैलकर बढने की प्रवृति के कारण इसकी मुख्य प्रतिस्पर्धा पोषक तत्वों के लिए होती है। कम तापक्रम पर इसकी वृद्धि अपेक्षाकृत कम होती है । इसमे प्रति पौधा २००० से ३००० अंकुरणशील बीज पैदा होते हैं। दूर्वा (दूब) घास मे 50 से भी अधिक औषधीय गुण होने के कारण आयुर्वेद में इसको महाऔषधि कहा गया है । इसमें फाइबर (Fiber), प्रोटीन (Protein), फास्फोरस (Phosphorus), पोटेशियम (Potassium), कैल्शियम (Calcium), कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) इत्यादि प्रचुरता मात्रा मे पाए जाते है।

दूर्वा का पौधा ज़मीन से ऊँचा नहीं उठता, बल्कि ज़मीन पर ही फैला हुआ रहता है, इसलिए इसकी नम्रता को देखकर गुरु नानक ने एक स्थान पर कहा है-
नानकनी चाहो चले, जैसे नीची दूब
और घास सूख जाएगा, दूब खूब की खूब।

विष्णवादिसर्वदेवानां दूर्वे त्वं प्रीतिदा यदा।
क्षीरसागर संभूते वंशवृद्धिकारी भव।।
अर्थात् हे दुर्वा, तुम्हारा जन्म क्षीरसागर से हुआ है! तुम विष्णु आदि सब देवताओं को प्रिय हो।
तुलसीदास ने दूब को अपनी लेखनी से इस प्रकार सम्मान दिया है-
'रामं दुर्वादल श्यामं, पद्माक्षं पीतवाससा।'
समुद्र-मंथन के समय जब देवतागण अम्रत-कलश को ले कर जा रहे थे तो अम्रत-कलश से छलक कर कुछ बूंद प्रथ्वी के दूर्वा घास पर गिर गई थी इसलिए दूर्वा घास अमर हो गई। दूर्वा को बारह साल आप उखाड़ के अलग रख दे और बारह साल बाद भी अगर मिटटी में लगा दे तो भी ये पुनर्जीवित हो जाती है ।
यो दूर्वांकरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति ।
अर्थात- जो दुर्वा की कोपलों से (गणपति की) उपासना करते हैं उन्हें कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है ।

★ हरी दूब 2-4 इंच लम्बी तथा चिकनी होती है तथा इसकी नोकदार पतली पत्तियां निकलती हैं। यह वर्ष भर हरी रहती है, गर्मी के दिनों में सूख जाती है। इसके तने में अनेक गांठे होती हैं, इसकी छोटी-छोटी शाखाएं भूमि से ऊपर उठी रहती है।
★ हिन्दू धर्म शास्त्रों में दूब घास) को परम पवित्र माना गया है, प्रत्येक शुभ कामों पर पूजन सामग्री के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।
★ देवता, मनुष्य और पशु सभी की प्रिय दूर्वा घास(दूब), खेल के मैदान, मन्दिर परिसर, बाग व बगीचों में विशेष तौर पर उगाई जाती है, जबकि यह यहां-वहां यह अपने आप उग जाती है।
★ खासतौर पर हरी और सफेद दूब (घास) देखने को मिलती है, कहीं-कहीं नीली या काली दूब (घास) भी होती है।
1. हरी दूर्वा: यह दस्त, वमन (उल्टी), बुखार और रक्त (खून) के विभिन्न रोगों को शान्त करती है।
2. नीली दूर्वा : नीली दूब वात, पित्त, बुखार, भ्रम, शंका, प्यास को मिटाती है और लोहे को गलाती है।
3. सफेद दूर्वा : सफेद दूब रुचि को बढ़ाती है। यह कड़वी, शीतल, कषैली और मधुर होती है तथा कफ-पित्त, जलन और खांसी को नष्ट करती है। सफेद दूब फुंसी, रक्तविकार, कफ एवं जलन नाशक होती है।
सेवन की मात्रा : दूब का रस 10-20 मिलीलीटर। काढ़ा 40-80 मिलीलीटर। पत्तियों का चूर्ण 1-3 ग्राम। जड़ का चूर्ण 3-6 ग्राम।

वैसे तो सभी भगवानो की पूजा में दूर्वा बड़ा महत्व रखता है। दूर्वा गणेश जी को अति प्रिय होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के (9-26 ) अध्याय में कहा है, 'जो भी भक्ति के साथ दूर्वा की एक पत्ती, एक फूल, एक फल या पानी के साथ मेरी पूजा करता है, मैं उससे प्रसन्न हो जाता हूं।' पौराणिक संदर्भों से ज्ञात होता है कि क्षीर सागर से उत्पन्न होने के कारण भगवान विष्णु को यह अत्यंत प्रिय रही है। अतः सफेद या हरी दूर्वा चढ़ानी चाहिए। दूः+अवम्‌, इन शब्दों से दूर्वा शब्द बना है। 'दूः' यानी दूरस्थ व 'अवम्‌' यानी वह जो पास लाता है। दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है।
गणपति को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए। ऐसी दूर्वा को बालतृणम्‌ कहते हैं। सूख जाने पर यह आम घास जैसी हो जाती है। दूर्वा की पत्तियां विषम संख्या में (जैसे 3, 5, 7) अर्पित करनी चाहिए। पूर्वकाल में गणपति की मूर्ति की ऊंचाई लगभग एक मीटर होती थी, इसलिए समिधा की लंबाई जितनी लंबी दूर्वा अर्पण करते थे। मूर्ति यदि समिधा जितनी लंबी हो, तो लघु आकार की दूर्वा अर्पण करें, परंतु मूर्ति बहुत बड़ी हो, तो समिधा के आकार की ही दूर्वा चढ़ाएं। जैसे समिधा एकत्र बांधते हैं, उसी प्रकार दूर्वा को भी बांधते हैं। ऐसे बांधने से उनकी सुगंध अधिक समय टिकी रहती है। उसे अधिक समय ताजा रखने के लिए पानी में भिगोकर चढ़ाते हैं। इन दोनों कारणों से गणपति के पवित्रक (पवित्री) बहुत समय तक मूर्ति में रहते हैं।
गणेश जी को दूर्वा एक खास तरीके से चढ़ाई जाती है। गणेश जी को हमेशा दूर्वा का जोड़ा बनाकर चढ़ाना चाहिए यानि कि 22 दूर्वा को जोड़े से बनाने पर 11 जोड़ा दूर्वा का तैयार हो जाता है। जिसे भगवान गणेश को अर्पित करने से मनोकामना की पूर्ति में सहायक माना गया है।
इन मंत्रों के साथ गणेश जी को 11 जोड़ा दूर्वा चढ़ाए-
ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ विघ्ननाशनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः
ॐ कुमारगुरवे नमः रिद्धि-सिद्धि सहिताय
श्री मन्महागणाधिपतये नमः
यदि आपको लग रहा कि इन मंत्रों को बोलनें में आपको परेशानी होगी तो इस मंत्र को बोल कर गणेश जी को दूर्वा अर्पण करें।
श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।

अथवा

21 दूर्वा को एकसाथ इकट्‍ठी करके 1 गांठ बनाई जाती है तथा कुल 21 गांठें गणेशजी को मस्तक पर चढ़ाई जाती हैं।
गणेश जी को 21 दूर्वा चढ़ाते समय नीचे लिखे 10 मंत्रों को बोला जाता है ।
यानी हर मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाएं और आखिरी बची दूर्वा चढ़ाते वक्त सभी मंत्र बोलें।
ॐ गणाधिपाय नमः ,ॐ उमापुत्राय नमः ,ॐ विघ्ननाशनाय नमः ,ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः ,ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ,ॐ एकदन्ताय नमः ,ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः ,ॐ कुमारगुरवे नमः

श्री गणेश और दूर्वा की पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। अनलासुर एक ऐसा दैत्य था, जो मुनि-ऋषियों और साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था। इस दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर इंद्र सहित सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि भगवान महादेव से प्रार्थना करने जा पहुंचे और सभी ने महादेव से यह प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का खात्मा करें।
तब महादेव ने समस्त देवी-देवताओं तथा मुनि-ऋषियों की प्रार्थना सुनकर उनसे कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं। फिर सबकी प्रार्थना पर श्री गणेश ने अनलासुर को निगल लिया, तब उनके पेट में बहुत जलन होने लगी।
इस परेशानी से निपटने के लिए कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्री गणेश को खाने को दीं। यह दूर्वा श्री गणेशजी ने ग्रहण की, तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई। ऐसा माना जाता है कि श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई।

यदि आपको किसी भी काम में बार बार प्रयास के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है। तो दुर्वा घास में प्राकृतिक तौर पर गजब की शक्तिया है, इसलिए सफ़ेद गाय के दूध में इस दुर्वा घास को पीसकर मिलाएं और उसका तिलक लगाकर काम पर निकले आपको कभी भी असफलता का मुंह नहीं देखा पड़ेगा।

दूर्वा घास(दूब) के नुकसान
दूब का सामान्य से अधिक मात्रा में सेवन करने पर यह आमाशय को नुकसान पहुंचा सकती है और कामशक्ति में कमी ला सकती है।
हरी दूब का अधिक मात्रा में सेवन करने से स्त्रियों को उल्टी आने लगती है।
दूर्वा को कालीमिर्च व इलायची के साथ सेवन करने पर नुकसानदायक नहीं होती हैं।
दूर्वा घास (दूब) औषधीय गुण
1॰ नाक से खून निकलना : नाक से खून निकले तो ताजी व हरी दूर्वा का रस 2-2 बूंद नाक के नथुनों में टपकाने से नाक से खून आना बंद हो जायेगा।
2॰ बिवाई (एंड़ी का फटना):
• संथालजाति के लोग दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं।
• दूब का लेप बिवाइयों (फटी एड़ियों) पर लगाने से आराम मिलता है।
• यदि शरीर की त्वचा कहीं-कहीं से फट गई हो और उसमें से खून भी निकल रहा हो तो हरी दूब (घास) को थोड़ी सी हल्दी के साथ पीसकर पानी में मिला लें और साफ कपड़े से छान लें। इसमें थोड़ा-सा नारियल का तेल मिलाकर सारे शरीर की मालिश करने से धीरे-धीरे त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
3॰ मुंह के छाले : दूब के काढ़े से दिन में 3-4 बार गरारे करने से मुंह के छालों में लाभ पहुंचता है।
4॰खूनी बवासीर:
• तालाब के नजदीक की हरी दूब को मिट्टी के बर्तन में थोड़े पानी के साथ आंच पर चढ़ाकर उबालने से खूनी बवासीर का दर्द शान्त होता है।
• दूब के पत्तों, तनों, टहनियां और जड़ों को दही में पीसकर मस्सों व गुदा में लगायें और सुबह-शाम 1 कप की मात्रा में सेवन करें। इससे खूनी बवासीर में लाभ मिलेगा।
5॰ मानसिक रोग: शरीर में ज्यादा गर्मी, जलन, महसूस होने पर दूब का रस सारे शरीर पर लगाने से मानसिक रोग के कष्ट में आराम मिलता है।
6॰ हिचकी: दूब का रस और 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से हिचकी आना बंद होती है।
7॰ पेशाब में जलन: 4 चम्मच दूब के रस को 1 कप दूध के साथ सेवन करने से पेशाब के जलन में लाभ मिलता है।
8॰ पेशाब उतरने में कष्ट: 10 ग्राम दूब की जड़ को 1 कप दही में पीसकर सेवन करने से पेशाब करते समय का दर्द दूर हो जाता है।
9॰ कामशक्ति की कमी: सफेद दूर्वा वीर्य को कम करती है और कामशक्ति को घटाती है।
10॰ त्वचा के रोग: दूब के रस और सरसों के तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर गर्म करें जब पानी उड़ जाए तो इस तेल को चर्म विकारों (चमड़ी के रोगों) पर दिन में 2-3 बार लगाने से लाभ होता है।
11॰ रक्तपित्त:
• रक्तपित्त के रोग में दूब का रस, अनार के फूलों का रस, गोबर और घोड़े की लीद का रस मिलाकर पीने से खून का बहना बंद हो जाता है।
• दूब का 30 मिलीलीटर रस लेने से रक्तपित्त में आराम आता है। इसके साथ ही यह खूनी बवासीर और टी.बी के रोगी का बहने वाला खून भी रोक देती है।
12॰ मलेरिया बुखार: मलेरिया के बुखार में दूध के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में 2-3 बार चटाने से, बारी से चढ़ने वाला मलेरिया बुखार में अत्यधिक लाभ मिलता है।
13॰ नकसीर:
• हरी दूब का ताजा रस निकालकर नाक में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।
• हरी ताजी दूब (घास) को जमीन पर से उखाड़कर पानी से धो लें। फिर उस घास को पीसकर उसका रस निकाल लें। इस रस की 2-2 बूंदे नाक के दोनों छेदों में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।
• 2 चम्मच चीनी को दूब के रस में मिलाकर नाक में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।
14॰ दाद, खाज-खुजली : हल्दी के साथ बराबर मात्रा में दूब पीसकर बने लेप को नियमित रूप से 3 बार लगाने से दाद, खाज-खुजली और फुंसियां ठीक हो जाती हैं।
15 ॰ रक्तप्रदर:
• 2 चम्मच दूब के रस में आधा चम्मच चन्दन और मिश्री का चूर्ण मिलाकर 2-3 बार सेवन करने से रक्तप्रदर नष्ट होता है।
• हरीदूब (दूर्वा) का रस 10 ग्राम रोजाना शहद के साथ सुबह, दोपहर और शाम सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।
• मासिक-स्राव में अधिक रक्त स्राव (खून बहने) होने पर दूब का रस आधा कप मिश्री मिलाकर सुबह-शाम को देना चाहिए। इससे रक्तप्रदर में बहुत अधिक लाभ मिलता है। इसके साथ ही चावल का पानी मिला दिया जाए तो इस रोग में लाभ और अच्छा मिलता है।
16॰ चोट से रक्तस्राव
• चोट से खून निकलने पर दूब का लेप बनाकर लगाने से और पट्टी बांधने से रक्तस्राव (खून बहना) रुक जाता है और जख्म जल्द ही भर जाता है।
• कटने या चोट लगने से यदि रक्तस्राव (खून बहना) हो तो दूब को कूटकर उसका रस निकालकर उसमें कपड़े को भिगोकर चोट पर उस कपड़े को बांधने से खून का बहना बंद हो जाता है।
17 ॰ आंखों की जलन: ताजी दूब को बारीक पीसकर 2 चपटी गोलियां बना लेते हैं। इन गोलियों को आंखों की पलकों पर रखने से आंखों का जलन और दर्द समाप्त हो जाता है।
18 ॰ मासिक धर्म की रुकावट: सफेद दूब और अनार की कली को रात को जले राख में भीगे चावलों के साथ पीसकर 1 सप्ताह तक सेवन करने से ऋतुस्राव (माहवारी) की रूकावट में लाभ मिलता है।
19॰ प्यास की अधिकता: हरी दूब का 2 चम्मच रस 3-4 बार सेवन करने से किसी भी रोग में प्यास दूर हो जाती है।
20॰ सिर दर्द: जौ को 3 चम्मच दूब के रस में घोटकर सिर पर मलने से सिर दर्द दूर होता है।
21॰ फोड़ा: पके फोड़े पर रोजाना दूब को पीसकर लेप करने से फोड़ा फूट जाता है।
22॰ पथरी: दूब को जड़ सहित उखाड़कर उसकी पत्तियों को तोड़कर अलग कर लेते हैं फिर इसे पीसकर, इसमें स्वादानुसार मिश्री डालकर, पानी के साथ छान लेते हैं। इसे 1 गिलास की मात्रा में रोजाना पीने से पथरी गल जाती है और पेशाब खुलकर आता है।
23॰ आंख की रोशनी: सुबह के समय हरी दूब में नंगे पैर चलने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।
24॰ सूजन: दूब के रस में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से विभिन्न सूजनों में लाभ मिलता है।
25॰बच्चों के रोग: बड़ी-बड़ी शाखाओं वाली दूब जो अक्सर कुंओं पर होती है। उसे छानकर उसमें 2-3 ग्राम बारीक पिसे हुए नागकेशर और छोटी इलायची के दाने मिलाकर, सुबह सूरज उगने से पहले उस बच्चे को जिसका तालू बैठ गया हो उसकी नाक में डालकर सुंघाने से तालू ऊपर को चढ़ जाती है। इसके सेवन से ताकत बढ़ती है। बच्चे दूध निकालना बंद कर देते हैं तथा बच्चों का दुबलापन (कमजोरी) समाप्त हो जाती है।
26॰ नाक के रोग:
• 40 ग्राम रोहित घास का काढ़ा सुबह और शाम पीने से जुकाम ठीक हो जाता है और कफ (बलगम) का रोग भी ठीक हो जाता है।
• दूब (घास) को किसी पत्थर पर पीसकर कपड़े में रखकर निचोड़कर लगभग 1 किलो के करीब इसका रस निकाल लें। इसके बाद इसे कड़ाही में डालकर इसमें लगभग साढ़े 4 किलोग्राम तेल डालकर पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद जब तेल बाकी रह जाये तो इसे उतारकर छान लें। इस तेल को रोजाना नाक में डालने से मुंह और नाक से गन्दी हवा निकलने का रोग ठीक हो जाता है।
27॰ घाव: ताजा कटे-फटे घाव में हरी दूब की पत्तियों को पीसकर लेप करें तथा उन पत्तियों को घाव पर बांधते भी हैं। इससे खून का बहना रुकता है और घाव जल्दी भर जाता है।
• घाव से बहते हुए खून को रोकने के लिए दूब को घाव पर पीसकर लगाने से लाभ होता है।
28॰ अतिसार: दूब का ताजा रस संकोचक होता है। इसलिए यह पुराने अतिसार और पतले दस्तों में उपयोगी होता है।
29॰ मूत्रविकार:
• दूब की जड़ का काढ़ा दर्दनाशक (दर्द को दूर करने वाला) और मूत्रवर्द्धक (पेशाब लाने वाला) होता है। इसलिए वस्तिशोथ, सूजाक और पेशाब की जलन में यह बहुत ही उपयोगी होता है।
• दूब को मिश्री के साथ घोट छानकर पिलाने से पेशाब के साथ खून आना बंद हो जाता है।
• दूब को पीसकर दूध में छानकर पिलाने से पेशाब की जलन मिट जाती है।
30॰ मूत्रकृच्छ: दूर्वा की जड़ को पीसकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब मे जलन) का रोग नष्ट हो जाता है।
31॰ गर्भपात से रक्षा : प्रदर रोग में तथा रक्तस्राव (खून आना), गर्भपात आदि योनि रोगों में दूब का उपयोग करते हैं। इससे खून रुक जाता है, गर्भाशय को शक्ति मिलती है तथा गर्भ को पोषण करता है।
32॰ एलर्जिक का बुखार: दूब और हल्दी को पीसकर पूरे शरीर पर लेप करने से शीत-पित्त का रोग मिट जाता हैं।
33॰ आंखों का इलाज: सुबह-सुबह नंगे पैर पार्क मे हरी दूर्वा (घास) पर घूमने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
34॰ बहरापन: धोली दूब को घी में डालकर आग पर पकाकर जला लें। फिर इसे आग पर से उतार कर ठण्डा कर लें। इस तेल को चम्मच मे हल्का सा गर्म करके 2-2 बूंदे दोनों कानों में डालने से बहरेपन का रोग दूर हो जाता है।
35॰ आंव (आंव अतिसार) होने पर:
• दूब, सोंठ और सौंफ को पानी में उबालकर पीने से पेट में आंव (एक प्रकार का चिकना पदार्थ जो मल के साथ बाहर निकल जाता हैं) दस्त को बंद कर देता है।
• दूब घास और आम को मिलाकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से आंव (एक प्रकार का चिकना पदार्थ जो मल के साथ बाहर निकल जाता हैं) दस्त समाप्त हो जाता हैं।
36॰ आंखों का दर्द: हरी दूब (घास) का रस पलकों पर लेप करने या उसको पीसकर लुगदी बनाकर रात में सोते समय आंखों पर बांधने से आंखों के दर्द और जलन दूर हो जाती है। आंखों का धुंधलापन दूर हो जाता है। कुछ दिनो तक लगातार इसका प्रयोग करना चाहिए।
37॰ बादी का बुखार: दूब के रस मे अतीस का चूर्ण मिलाकर चाटने से बादी का बुखार उतर जाता हैं।
38॰ जीभ और मुंख का सूखापन: पित्त की वृद्धि से होने वाले जीभ या मुंह का सूखापन के रोग में 10 से 20 ग्राम सफेद दूब या हरी दूब के रस को मिश्री के साथ मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से लाभ होता है।
39॰ बवासीर: 50 मिलीलीटर दूब का रस लेकर उसमें चीनी मिलाकर पीने से बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।
40॰ कान का बहना: हरी दूब के रस को छानकर 2 से 3 बूंद रोजाना 3 से 4 बार कान में डालने से कान से पानी आना, मवाद बहना और बहरापन ठीक हो जाता है।
41॰ पित्त बढ़ने पर: पित्त के बढ़ने पर हरी दूब का 10 ग्राम रस सुबह-शाम मिश्री के साथ रोगी को देने से फायदा होता है। पित्त के बढ़ने पर हरी दूब के अलावा अगर सफेद दूब का उपयोग किया जाये तो ज्यादा लाभ मिलता है।
42॰ दूर्वा की जड़ और तने को अच्छी तरह से धोकर पीस लें तथा पानी में मिलाकर शर्बत बनाकर छान लें। इस शर्बत में मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीयें। इससे पथरी गल जाती है तथा पेशाब खुलकर आता है।
43॰ दस्त के लिए: हरी दूब का रस लगभग 10 ग्राम की मात्रा में रोगी को पिलाने से दस्त का आना बंद हो जाता हैं।
44॰ पथरी: दूब की जड़ तथा तने को पानी में अच्छी तरह से धोकर बारीक लेप बना लें। 5 ग्राम लेप को 1 गिलास पानी में मिलाकर 15 से 20 दिन पीने से पथरी ठीक हो जाती है।
45॰ चेहरे के दाग और धब्बे: हरी दूब को हल्दी के साथ मिलाकर पीस लें और घोल बनाकर पूरे शरीर पर लगाने से खाज-खुजली, दाद और त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
46॰ चेहरे की झांइया: 40 ग्राम हरीदूब (दूर्वा) की जड़ का काढ़ा सुबह और शाम पिलाने से चेहरे की झांइयों के साथ-साथ त्वचा के सारे रोग मिट जाते हैं।
47॰ मिर्गी (अपस्मार): 10 ग्राम हरीदूब के रस का सेवन सुबह और शाम को करने से मिर्गी रोग दूर हो जाता है।
48॰ गठिया (घुटने का दर्द): गठिया के रोगी का उपचार करने के लिए रोहितघास के पत्तों से बने तेल को लेकर मालिश करने से रोगी को लाभ मिलता है।
49॰ जलोदर (पेट में पानी का भरना): 10 ग्राम हरी दूब (दूर्वा) के रस को खुराक के रूप में सुबह और शाम लेने से जलोदर (पेट में पानी का भरना) के रोग में लाभ होता है।
50॰ उपदंश (सिफलिस): दूब की जड़ का काढ़ा पीने से उपदंश के घाव और दाग मिट जाते हैं।
51॰ हैजा: बराबर मात्रा में 10-10 ग्राम दूब और अरबा चावल (कच्चा चावल) लेकर पीसकर रोगी को पिला देने से हैजा में लाभ होता है।
52॰ शिश्न चर्म रोग: लिंग की त्वचा को खीचकर उस पर हरी घास, हल्दी और नीम के पत्तों से बने रस की मालिश करने से लिंग की आगे की खाल हट जाती है।
53॰ खाज-खुजली: 2 चम्मच दूब के रस को तिल्ली के 100 मिलीलीटर तेल में मिलाकर खुजली वाले स्थान पर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।
54॰ शीतपित्त: दूब और हल्दी को एक साथ पीसकर लेप करने से शीतपित्त जल्दी ही खत्म हो जाती है।
55॰ कुष्ठ (कोढ़): दूब की ओस (पानी की बूंदे) को कुछ समय तक लगाते रहने से सफेद कोढ़ समाप्त हो जाता है।
56॰ फोड़े-फुंसियां: दूर्वा (Durva /Doob) को पीसकर पके हुए फोड़े पर लगाने से फोड़ा तुरन्त फूट जाता है।


No comments:

Post a Comment