Friday, December 7, 2018

खेजड़ी या शमी


खेजड़ी या शमी
खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ी, जांट/जांटी, सांगरी (राजस्थान), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं। इसे फेद कीकर, खेजडो, समडी, शाई, बाबली, बली, चेत्त आदि भी कहा जाता है। इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है। खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब पेड़ बड़े हो जाते हैं तो हर वर्ष नवंबर-दिसम्बर में इनकी छंगाई करते हैं छंगाई से पत्तियों को सुखाने के बाद के बाद झाड़ कर अलग करके भंडारण कर लेते हैं बाद में चारे के लिए उपयोग करते हैं। पश्चिमी राजस्थान के कुछ जिलों जैसे जोधपुर,बाड़मेर तथा जैसलमेर में पेड़ों की छंगाई न करके हाथ में हरा लूंग इकट्ठा करके हरी अवस्था में ही पशुओं को विशेषकर बकरियो को खिलाते हैं जिससे बकरियों के दुग्ध उत्पादन में काफी इजाफा होता है। इसकी विधि में लूंग लेने में सिर्फ पत्तियां व छोटी शाखाएँ साथ में टूटती हैं, जिससे सांगरी उत्पादन प्रभावित नहीं होता; जबकि छंगाई करने से अगली ऋतु में अर्थात मार्च-अप्रैल में उनकी पेड़ों पर सांगरी नहीं आती। यानी केवल लूंग उत्पादन से संतुष्ट होना पड़ता है । इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे। इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है। १९८३ में इसे राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष घोषित कर दिया था।

जगत पादप (Plantae)
संघ मैग्नोलियोफ़ाइटा (Magnoliophyta)
वर्ग यूडीकोट्स (Eudicots)
गण फ़ैबेल्स (Fabales)
कुल फ़ैबेसी (Fabaceae)
जाति प्रोसोपिस (Prosopis)
प्रजाति सिनरेरिया (Prosopis)
द्विपद नाम प्रोसोपिस सिनरेरिया (Prosopis Prosopis)



संरचना
शमी का वृक्ष आठ से दस मीटर तक ऊंचा होता है। शाखाओं पर कांटे होते हैं। इसकी पत्तियां द्विपक्षवत होती हैं। शमी के फूल छोटे पीताभ रंग के होते हैं। प्रौढ पत्तियों का रंग राख जैसा होता है, इसीलिए इसकी प्रजाति का नाम 'सिनरेरिया' रखा गया है अर्थात 'राख जैसा'। खेजड़ी की पकी सांगरियों में औसतन 8-15 प्रोटीन, 40-50 प्रतिशत कार्बोहाइडे्रट, 8-15 प्रतिशत शर्करा, 8-12 प्रतिशत रेशा, 2-3 प्रतिशत वसा, 0.4-0.5 प्रतिशत कैल्सियम, 0.2-0.3 प्रतिशत लौह तत्व तथा अन्य सुक्ष्म तत्व पाये जाते हैं जोकि मानव व पशुओं के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही गुणकारी हैं|

महत्त्व
हिन्दू धर्म में शमी वृक्ष से जुड़ी कई मान्यताएँ है, जैसे-
विजयादशमी या दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है। मान्यता है कि यह भगवान श्री राम का प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा करके उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी कई स्थानों पर 'रावण दहन' के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते स्वर्ण के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।(विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।)
शमी वृक्ष का वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है। अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी पेड़ पर छुपाये थे, जिसमें अर्जुन का गांडीव धनुष भी था। कुरुक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले भी पांडवों ने शमी के वृक्ष की पूजा की थी और उससे शक्ति और विजय प्राप्ति की कामना की थी। तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी इस वृक्ष कि पूजा करता है उसे शक्ति और विजय प्राप्त होती है।
शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥
अर्थात "हे शमी, आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले हैं। आप अर्जुन का धनुष धारण करने वाले हैं और श्री राम को प्रिय हैं। जिस तरह श्री राम ने आपकी पूजा की मैं भी करता हूँ। मेरी विजय के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये।
अन्य विशेष तथ्य
दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है। (शमी पूजन) रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है।
अन्य कथा के अनुसार कवि कालिदास ने शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या करके ही ज्ञान की प्राप्ति की थी।
शमी वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है। शनि देव को शान्त रखने के लिये भी शमी की पूजा की जाती है।
शमी को गणेश जी का भी प्रिय वृक्ष माना जाता है और इसकी पत्तियाँ गणेश जी की पूजा में भी चढ़ाई जाती हैं।
बिहार, झारखण्ड और आसपास के कई राज्यों में भी इस वृक्ष को पूजा जाता है। यह लगभग हर घर के दरवाज़े के दाहिनी ओर लगा देखा जा सकता है। किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन को शुभ मना जाता है।
राजस्थान के विश्नोई समुदाय के लोग शमी वृक्ष को अमूल्य मानते हैं।
ऋग्वेद के अनुसार शमी के पेड़ में आग पैदा करने कि क्षमता होती है और ऋग्वेद की ही एक कथा के अनुसार आदिम काल में सबसे पहली बार पुरुओं(चंद्रवंशियों के पूर्वज) ने शमी और पीपल की टहनियों को रगड़ कर ही आग पैदा की थी।
कवियों और लेखकों के लिये शमी बड़ा महत्व रखता है। हिन्दू धर्म में भगवान चित्रगुप्त को शब्दों और लेखनी का देवता माना जाता है और शब्द-साधक यम-द्वितीया (दीपावली के दो दिन बाद) को यथा-संभव शमी के पेड़ के नीचे उसकी पत्तियों से उनकी पूजा करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि घर में शमी का पेड़ लगाने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्ध‍ि आती है. साथ ही यह वृक्ष शनि के कोप से भी बचाता है । न्याय के देवता शनि को खुश करने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं, जिनमें से एक है शमी के पेड़ की पूजा. शनिदेव की टेढ़ी नजर से रक्षा करने के लिए शमी के पौधे को घर में लगाकर उसकी पूजा करनी चाहिए । नियमित रूप से शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है । शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है। सभी यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग शुभ माना गया है। शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है। शमी के पंचांग, यानी फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पाई जा सकती है। शमी को वह्निवृक्ष भी कहा जाता है. आयुर्वेद की दृष्टि में तो शमी अत्यंत गुणकारी औषधि मानी गई है। कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं। पौराणि‍क मान्यताओं में शमी का वृक्ष बड़ा ही मंगलकारी माना गया है। लंका पर विजयी पाने के बाद श्रीराम ने शमी पूजन किया था । नवरात्र में भी मां दुर्गा का पूजन शमी वृक्ष के पत्तों से करने का विधान है । गणेश जी और शनिदेव, दोनों को ही शमी बहुत प्रिय है ।
भगवान गणेश की उपासना में भी कुछ विशेष और सरल उपाय मन ही नहीं घर-परिवार से अशांति को दूर रखने वाले माने गए हैं।
इन उपायों में ही एक है- भगवान गणेश को शमी पत्र अर्पित करना। धार्मिक मान्यताओं में शमी का वृक्ष बड़ा ही मंगलकारी माना गया है।
शमी पत्र श्रीगणेश को दूर्वा की तरह ही बहुत प्यारा माना गया है। यह 'वह्निवृक्ष या पत्र' नाम से भी जाना जाता है। इसमें शिव का वास भी माना गया है, जो श्री गणेश के पिता हैं और मानसिक क्लेशों से मुक्ति देने वाले देवता हैं।
यही वजह है कि शमी पत्र का चढ़ावा श्रीगणेश की प्रसन्नता से बुद्धि को पवित्र कर मानसिक बल देने वाला माना गया है। अगर आप भी मन और परिवार को शांत और सुखी रखना चाहते हैं तो "त्वत्प्रियाणि सुपुष्पाणि कोमलानि शुभानि वै। शमी दलानि हेरम्ब गृहाण गणनायक।।" मंत्र से गणेशजी को शमी पत्र अर्पित करें।
शिवलिंग पर चढ़ाएं शमी के पत्ते
रोज सुबह शिव मंदिर जाएं और तांबे के लोटे में गंगाजल या साफ जल में थोड़ा सा गंगाजल मिला लें। इसके बाद चावल, सफेद चंदन भी पानी में मिला लें। "ॐ नम: शिवाय" मंत्र बोलते हुए ये जल शिवलिंग पर अर्पित करें। तांबे के लोटे से जल चढ़ाने के बाद शिवलिंग पर चावल, बिल्वपत्र, सफेद वस्त्र, जनेऊ, मिठाई भी चढ़ाएं। इसके बाद शमी के पत्ते भी चढ़ाएं। शमी पत्ते चढ़ाते समय ये मंत्र बोलें
अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।
दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम्।।"
शमी पत्र चढ़ाने के बाद शिवजी की धूप, दीप और कर्पूर से आरती कर प्रसाद ग्रहण करें।

शमी के औषधिय उपयोगः-
शमी के पत्ते स्वाद में कटु, तिक्त, कषाय व गुण में लघु,-रुक्ष है। स्वभाव से पत्ते शीत (फल उष्ण) और कटु विपाक है। यह शीत है। का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।
शमी का फल भारी, पित्तकारक, रूखे माने गए हैं। इनका सेवन मेधा और केशों का नाश करने वाला बताया गया है।
शमी के पत्तों का चूर्ण 3-5 ग्राम की मात्रा में अकेले ही इन रोगों में लाभप्रद है:
अर्श (piles)
अतिसार (diarrhoea)
बालगृह (psychotic syndrome of children)
भ्रम (vertigo)
कृमि (worm infestation)
कास (cough)
कुष्ठ (Leprosy /diseases of skin)
नेत्ररोग (diseases of the eye)
रक्तपित्त (bleeding disorder)
श्वास (Asthma)
विषविकार (disorders due to poison)
शमी की छाल के काढ़े को 50-100 ml की मात्रा में फलों के चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा में लेते हैं।

1 त्वचा की समस्याओं में इसकी लकड़ी काफी लाभकारी साबित हो सकती है। त्वचा पर होते वाले फोड़े-फुंसी आदि में शमी की लकड़ी को घिस कर लगाना फायदा पहुंचाता है और ये समस्याएं जल्दी खत्म हो जाती हैं।
2 खुजली होने पर आप इसकी पत्त‍ियों का प्रयोग लेप के रूप में कर सकते हैं। इसके लिए शमी की पत्तियों को दही के साथ पीसकर लेप बनाएं और खुजली वाले स्थान पर लगा लें, लाभ होगा।
3 पेशाब संबंधी समस्या होने पर शमी के फूलों को दूध में उबालकर, ठंडा होने पर पिसा हुआ जीरा मिलाकर रोगी को दिया जाता है। खास तौर से पेशब में धातु आने पर यह दिन में दो बार पीना लाभकारी होता है।
4 शरीर में गर्मी अधिक बढ़ जाने पर शमी के पत्तों का रस निकालकर पानी में जीरे और शक्कर के साथ मिलाकर पीने से राहत मिल सकती है। इससे शरीर में ठंडक आती है।
5 जहर उतारने के लिए भी आप इसका प्रयोग कर सकते हैं। शमी के पत्तों को नीम की पत्त‍ियों के साथ पीसकर इसका रस अगर रोगी को पिलाया जाए, तो जहर का असर कम हो जाता है।
6 प्रमेह रोग- शमी की कोपल को पांच ग्राम की मात्रा में चबा कर खाने के बाद गाय का दूध पीने से लाभ होता है। ऐसा 2-4 दिन तक किया जाता है।
7 गर्भपात रोकने के लिए -इसके फूलों और चीनी के पेस्ट को गर्भावस्था में खाया जाता है।
8 सफ़ेद पानी (श्वेत प्रदर / लिकोरिया)- जड़ों की छाल का चूर्ण 1-3 ग्राम की मात्रा में 100 ml बकरी के दूध के अट्टह लिया जाता है।
9 धातु रोग, धातुपौष्टिक, स्तम्भन बढ़ाने के लिए -शमी की कोपलें 5-10 ग्राम की मात्रा में, बराबर मात्रा में मिश्री के साथ पानी डाल कर पीसकर लेने से लाभ होता है।
10 पित्त प्रकोप के रोग - शमी की कोपलें 5-10 ग्राम की मात्रा में, खांड के साथ लेकर ऊपर से गाय का दूध पियें।
11 आँखों के लिए ड्रॉप्स - पत्तों के रस को आँखों में डाला जाता है।
12 अपच - ताज़ा पत्तों को पीस कर, नींबू के रस के साथ खाया जाता है।
13 दांतों में दर्द - पत्तों को चबाने से दांत मजबूत होते हैं और दर्द में लाभ होता है।

शमी के उपाय
हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी। हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तो के बराकर एक नीलकमल, हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हजार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है।
घर की उत्तर-पूर्व दिशा के कोने में शमी का पौधा लगाना चाहिए।
शमी का पौधा ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जो घर से निकलते समय दाहिनी ओर पड़ता हो।
धन रखने के स्थान पर पान के पत्ते में शमी की लकड़ी को लपेटकर रखने से धन का अभाव कभी नहीं रहता।
यदि परिवार में धन का अभाव बना हुआ है। खूब मेहनत करने के बाद भी धन की कमी है और खर्च अधिक है तो किसी शुभ दिन शमी का पौधा खरीदकर घर ले आएं। शनिवार के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर नए गमले में शुद्ध मिट्टी भरकर शमी का पौधा लगा दें। इसके बाद शमी पौधे की जड़ में एक पूजा की सुपारी और एक रुपए का सिक्का दबा दें। पौधे पर गंगाजल अर्पित करें और पूजन करें। पौधे में रोज पानी डालें और शाम के समय उसके समीप एक दीपक लगाएं। आप स्वयं देखेंगे धीरे-धीरे आपके खर्च में कमी आने लगेगी और धन संचय होने लगेगा।
शनिवार को शाम के समय शमी के पौधे के गमले में पत्थर या किसी भी धातु का एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित करें। शिवलिंग पर दूध अर्पित करें और विधि-विधान से पूजन करने के बाद महामृत्युंजय मंत्र की एक माला जाप करें। इससे स्वयं या परिवार में किसी को भी कोई रोग होगा तो वह जल्दी ही दूर हो जाएगा।
विवाह में बाधा आने का एक कारण जन्मकुंडली में शनि का दूषित होना भी है। किसी भी शनिवार से प्रारंभ करते हुए लगातार 45 दिनों तक शाम के समय शमी के पौधे में घी का दीपक लगाएं और सिंदूर से पूजन करें। इस दौरान अपने शीघ्र विवाह की कामना व्यक्त करें। इससे शनि दोष समाप्त होगा और विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होंगी।
जन्मकुंडली में यदि शनि से संबंधित कोई भी दोष है तो शमी के पौधे को घर में लगाना और प्रतिदिन उसकी सेवा-पूजा करने से शनि की पीड़ा समाप्त होती है।
सोमवार को शमी के पौधे में एक लाल मौली बांधे। इसे रातभर बंधे रहने दें। अगले दिन सुबह वह मौली खोलकर एक चांदी की डिबिया या ताबीज में भरकर तिजोरी में रखें, कभी धन की तंगी नहीं होगी।
जिन लोगों को शनि की साढ़े साती या ढैया चल रहा हो उन्हें नियमित रूप से शमी के पौधे की देखभाल करना चाहिए। उसमें रोज पानी डालें, उसके समीप शाम के समय दीपक लगाएं। शनिवार को पौधे में थोड़े से काले तिल और काले उड़द अर्पित करें। इससे शनि की साढ़ेसाती का दुष्प्रभाव कम होता। यदि आप बार-बार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हों तो शमी के पौधे के नियमित दर्शन से दुर्घटनाएं रुकती हैं।



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