Thursday, December 6, 2018

तिल - Sesamum indicum

तिल Sesamum indicum
तिल (अंग्रेज़ी:Sesamum indicum) का वानस्पतिक नाम 'सेसामम इंडिकम' हैं। तिल पेडिलिएसिई कुल का पौधा है, जो दो से चार फुट तक ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ तीन से पाँच इंच लंबी दीर्घवत्‌ या भालाकार होती हैं तथा इनका निचला भाग तीन पालियों या खंडोवा होता है। इसके पुष्प का दलपुंज हलका गुलाबी या श्वेत, 3/4" से 1' तक लंबा, नलिकाकार तथा पाँच विदारों वाला होता है। इसके ऊपर के ओष्ठों के दो पिंडक छोटे होते हैं। तिल अथवा इसके लिये प्रयुक्त होने वाला अन्य शब्द जिंजेली क्रमश: संस्कृत तथा अरबी भाषा से प्राप्त हुए हैं। धार्मिक संस्कारों में इसके प्रयोग से ज्ञात होता है कि इसे अति प्राचीन काल से तिलहन के रूप में भारत में उगाया जाता था। तिल का उद्गम भारत या अफ्रीका माना जाता है। सभी गरम देश, जैसे भूमध्यसागर के तटवर्ती प्रदेश, एशिया माइनर, भारत, चीन, मंचूरिया तथा जापान में इसकी खेती होती है। भारत में तिल की पैदावार विश्व की लगभग एक तिहाई होती है। इसके लिये हल्की बुमट तथा दुमट मिट्टी अधिक उपयुक्त है। यह मुख्यत: वर्षा में और कई स्थानों में शरद ऋतु में भी बोया जाता है। दाने का रंग मुख्यत: श्वेत, भूरा तथा काला होता है। औषधि के रूप में काले तिल का उपयोग अच्छा माना जाता है। रेबड़ी बनाने के लिए तिल तथा चीनी का उपयोग किया जाता है। भारत में तिल की खेती अधिक मात्रा में की जाती है। तिल की खेती स्वतंत्र रूप में या रूई, अरहर, बाजरा तथा मूंगफली आदि किसी भी फसल के साथ मिश्रित रूप में की जाती है। तिल उत्पादन के क्षेत्र में भारत का प्रमुख स्थान है।

तिल का तेल - तिल का तेल भारी, तर तथा गर्म होता है। यह शरीर में ताकत की वृद्धि करने वाला, मल को साफ करने वाला, शरीर के रंग को निखारने वाला, संभोग करने की शक्ति को बढ़ाने वाला, तिल का तेल कफ, वायु और पित्त को नष्ट करने वाला, रक्तपित्त (खूनी पित्त) को दूर करने वाला, गर्भाशय को साफ और शुद्ध करने वाला, भूख को बढ़ाने वाला तथा बुद्धि को तेज करने वाला होता है। मधुमेह (डायबिटिज़), कान में दर्द, योनिशूल तथा मस्तिष्क के दर्द को समाप्त करने वाला होता है।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

हिंदी
तिल,
संस्कृत
तिल,
गुजराती
तल, भीठु
मराठी
तिल, गोड़ा
बंगाली
तिल
फारसी
कुंजद, रोगन कुंजद
अरबी
शीरज़, सिमसिम, समसम, हल
वैज्ञानिक नाम
सेतूमन ओरीनटेल
कुलनाम
पेड़ालाइसई
अंग्रेजी नाम
गिनगेली सीसेम
पर्या. — हिमधान्य । पवित्र । पितृतर्पण । पापघ्न । पूतधान्य । जटिल । बनोद्भव । स्नेहफल । तैलफल ।
रंग : तिल काला, सफेद और लाल प्रकार के होते हैं।
स्वाद : तिल का रस खाने में मीठा, कड़वा, कषैला और चरपरा होता है।
स्वरूप : तिल का 1 साल का पौधा कोमल तथा रोमवृत होता है। इसके पेड़ लगभग 15 इंच से 36 ऊंचे होते हैं। तिल के पौधे पर जगह-जगह स्रावी ग्रंथियां पाई जाती है। इसकी पत्तियों का ऊपरी भाग सरल, मालाकार और आयताकार होता है और इसके अगले भाग में रेखाएं होती है तथा मध्य भाग लटवाकार होता है। पत्तों के किनारे दांतों के समान कई भागों में कटी-कटी होती है। तिल के फूल ड़ेढ़ इंच तक लम्बें, बैंगनी, सफेद और पीले बिंदुओं से युक्त होते हैं। इसकी फली 2 इंच लम्बी, चतुष्कोणाकार तथा आगे का भाग कुंठित सी होती है।
प्रकृति : तिल की प्रकृति भारी तथा गर्म होती है। यह चिकना होता है। तिलों से एक धुंधले पीले रंग का द्रव निकाला जाता है जिसे तिल का तेल या मीठा तेल कहा जाता है। इसकी गंध रुचिकर होता है। इस तेल में प्रोटीन आदि तत्व पाये जाते हैं। तिल के बीज में सिसेमोलिन, सिमेमिआ, लाइपेज, प्रधानता, ओतिक, निकोटिनिक एसिड, पामिटिक, लिनोलीक एसिड तथा थोड़ा-सी मात्रा में स्टियरिक और अरेकिडिक एसिड के ग्लिसराइडस पाये जाते हैं।
हानिकारक : गर्भवती स्त्री को तिल नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि गर्भ गिरने की आशंका रहती है।
गुण : तिल कफ, पित्त को नष्ट करने वाला, शक्ति को बढ़ाने वाला, सिर के रोगों को ठीक करने वाला, दूध को बढ़ाने वाला, व्रण (जख्म), दांतों के रोग को ठीक करने वाला तथा मूत्र के प्रवाह को कम करने वाला होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने तथा वात को नष्ट करने में लाभकारी होता है। काला तिल अच्छा तथा वीर्य को बढ़ाने वाला होता है। विद्वानों के अनुसार सफेद तिल मध्यम गुण वाला और लाल तिल कम गुणशाली होता है। तिल में पुराना गुड़ मिलाकर सेवन करने से वीर्य की कमी दूर होती है तथा पेट में वायु बनने की शिकायत दूर होती है।



ज्योतिषीय उपायः-
ज्योतिष के उपायों में अनेक चीजों का उपयोग किया जाता है। ऐसी ही एक चीज है काले तिल। शनि दोष, पितृ दोष, राहु-केतु के दोष दूर करने वाले उपायों में काले तिल का उपयोग किया जाता है। हवन में काले तिल डालने से बीमारियां दूर हो सकती हैं।
गरुड़ पुराण में तिल को बहुत ही पवित्र बताया गया है। इसलिए पूजा, हवन, यज्ञ में भी इसका उपयोग करना शुभ माना जाता है। आगे जानिए, काले तिल से जुड़े कुछ आसान उपाय...
1. जिस व्यक्ति पर साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव हो, उसे हर शनिवार को नदी में काले तिल बहाना चाहिए। इससे शनि के अशुभ असर में कमी आ सकती है।
2. कुंडली में अगर शनि अशुभ स्थान पर हो तो सरसों के तेल में काले तिल डालकर शनिदेव का अभिषेक करें।
3. राहु-केतु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए काले तिल का दान करना चाहिए।
4. पितृ दोष के अशुभ असर को कम करने के लिए अमावस्या पर लोटे में पानी और काले तिल लेकर सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए।
5. किसी को बुरी नजर लगी हो तो मुट्ठी में काले तिल लेकर उस व्यक्ति के सिर से पैर तक 7 बार वार कर चौराहे पर फेंक दें।
6. धन लाभ के लिए हर शुक्रवार किसी नदी या तालाब में मछलियों के लिए एक मुट्ठी काले तिल डालना चाहिए।
7. हर रोज एक लोटे में शुद्ध जल भरें और उसमें काले तिल डाल दें। अब इस जल को शिवलिंग पर ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए चढ़ाएं। जल पतली धार से चढ़ाएं और मंत्र का जप करते रहें। जल चढ़ाने के बाद फूल और बिल्व पत्र अर्पित करें। इस उपाय से शुभ फल प्राप्त होने की संभावनाएं बढ़ती हैं।
8. किसी व्यक्ति के जीवन में जब बुरा समय आता है तो उसके प्रत्येक कार्य अटकते हैं। वह भयंकर मानसिक कष्ट भोगता है। आर्थिक विपन्न्ता आती है और रोग उसे घेर लेते हैं। यदि ऐसा कुछ आपके जीवन में घटित हो रहा है तो घबराएं नहीं, दूध में काले तिल मिलाकर प्रत्येक शनिवार को पीपल में चढ़ाना प्रारंभ करें। इससे बुरा समय जल्द बीत जाएगा।
9. आर्थिक परेशानी (अ) आर्थिक परेशानी दूर करने में काले तिल के उपाय जैसा कुछ नहीं। हर शनिवार को काले तिल, काली उड़द को काले कपड़े में बांधकर किसी गरीब व्यक्ति को दान करें। इस उपाय से पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं।
(ब) यदि आप या आपके परिवार में कोई व्यक्ति लंबे समय से बीमार चल रहा है तो हर रोज शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करने से रोग दूर होते है। यह प्रयोग दुर्भाग्य दूर करता है।
10. धनहानि रोकने हेतु : मुठ्ठी भर काले तिल को परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर सात बार उसारकर घर के उत्तर दिशा में फेंक दें, धनहानि बंद होगी।
 11. बुरे समय से मुक्ति हेतु : 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करते हुए प्रत्येक शनिवार को दूध में काले तिल मिलाकर पीपल पर चढ़ाएं। इससे कैसा भी बुरा वक्त चल रहा होगा तो वह दूर हो जाएगा।
 12. रोग कटे सुख मिले :(a) हर रोज एक लोटे में शुद्ध जल भरें और उसमें काले तिल डाल दें। अब इस जल को शिवलिंग पर ऊँ नम: शिवाय मंत्र जप करते हुए चढ़ाएं। जल पतली धार से चढ़ाएं और मंत्र का जप करते रहें। जल चढ़ाने के बाद फूल और बिल्व पत्र चढ़ाएं। इससे शनि के दोष तो शांत होंगे ही पुराने समय से चली आ रही बीमारियां भी दूर हो सकती हैं।
 (b) दूसरा उपाय यह है कि शनिवार को यह उपय करें। जौ का 125 पाव (सवा पाव) आटा लें। उसमें साबुत काले तिल मिलाकर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा-सा तिल्ली का तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7 बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाए। भैंसा कहां मिलेगा, इसका पता पहले ही मालूम करके रखें। भैंस को रोटी नहीं खिलानी है।
 13. कार्य में सफलता हेतु : अपने हाथ में एक मुट्ठी काले तिल लेकर घर से निकलें। मार्ग में जहां भी कुत्ता दिखाई दे उस कुत्ते के सामने वह तिल डाल दें और आगो बढ़ जाए। यदि वह काले तिल कुत्ता खाता हुआ दिखाई दे तो यह समझना चाहिए कि कैसा भी कठिन कार्य क्यों न हो, उसमें सफलता प्राप्त होगी।
 14. नजरदोष : जब कभी किसी छोटे बच्चों को नजर लग जाती है तो, वह दूध उलटने लगता है और दूध पीना बन्द कर देता है, ऐसे में परिवार के लोग चिंतित और परेशान हो जाते है। ऐसी स्थिति में एक बेदाग नींबू लें और उसको बीच में आधा काट दें तथा कटे वाले भाग में थोड़े काले तिल के कुछ दाने दबा दें। और फिर उपर से काला धागा लपेट दें। अब उसी नींबू को बालक पर उल्टी तरफ से 7 बार उतारें। इसके पश्चात उसी नींबू को घर से दूर किसी निर्जन स्थान पर फेंक दें। इस उपाय से शीघ्र ही लाभ मिलेगा।
 15. धन प्राप्ति हेतु :
 *सोमवार को सांयकाल के समय काले तिल के साथ बिल्व पत्र के वृक्ष में कच्चा दूध, शहद, पताशा, गुलाब के पुष्प और केसर अर्पित करें एवं घी का दीपक जलाकर रखें।
 *गुरुवार को केले के पेड़ में काले तिल के साथ दूध, गंगाजल, शहद, केसर और चने की दाल को स्टील या चांदी के बर्तन में डालकर अर्पित करें एवं चमेली के तेल का दीपक प्रज्जवलित करें।
 *शनिवार को पीपल के वृक्ष में काले तिल के साथ कच्चा दूध, गंगाजल, शहद, गुड़ को स्टील या चांदी के बर्तन में डालकर अर्पित करें व सरसों के तेल का दीपक प्रज्जवलित करें।
 *मंगल या शनिवार के दिन काले तिल, जौ का पीसा हुआ आटा और तेल मिश्रित करके एक रोटी पकावें, उसे अच्छी तरह से दोनों तरफ से सेकें, फिर उस पर तेल मिश्रित गुड़ चुपड़ कर व्यक्ति पर सात बार उवारकर भैंसे को खिलावें।

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