Tuesday, December 4, 2018

महर्षि सुमन्तु


महर्षि सुमन्तु
सुमन्तु महर्षि वेदव्यास के शिष्य थे। वेदव्यास ने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को क्रमशः अपने शिष्य पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु मुनि को पढ़ाया था । अतः सुमन्तु महर्षि अथर्ववेद के शाखाप्रचारक तथा एक स्मृति या धर्मशास्त्र के प्रणेता थे ।

जैमिनि ऋषि का पुत्र सुमन्तु था और उसका पुत्र सुकर्मा हुआ | उन दोनों महामति पुत्र-पौत्रों ने सामवेद की एक-एक शाखाका अध्ययन किया || २ || तदनन्तर सुमन्तु के पुत्र सुकर्मा ने अपनी सामवेदसंहिता के एक सहस्त्र शाखाभेद किये और हे द्विजोत्तम ! उन्हें उसके कौसल्य हिरण्यनाभ तथा पौष्पिंची नामक दो महाव्रती शिष्यों ने ग्रहण किया | हिरण्यनाभ के पाँच सौ शिष्य थे जो उदीच्य सामग कहलाये || ३ – ४ ||
इसी प्रकार जिन अन्य द्विजोत्तमों ने इतनी ही संहिताएँ हिरण्यनाभ से और ग्रहण की उन्हें पंडितजन प्राच्य सामग कहते है || ५ || पौष्पिंचि के शिष्य लोकाक्षि, नौधमि, कक्षीवान और लांगलि थे | उनके शिष्य-प्रशिष्यों ने अपनी-अपनी संहिताओं के विभाग करके उन्हें बहुत बढ़ा दिया || ६ || महामुनि कृति नामक हिरण्यनाभ के एक और शिष्य ने अपने शिष्यों को सामवेद की चौबीस संहिताएँ पढायी || ७ || फिर उन्होंने भी इस सामवेदका शाखाओं द्वारा खूब विस्तार किया | ..................
अथर्ववेद को सर्वप्रथम अमित तेजोमय सुमन्तु मुनि ने अपने शिष्य कबंध को पढाया था फिर कबंध ने उसके दो भाग कर उन्हें देवदर्श और पथ्य नामक अपने शिष्यों को दिया || ९ || हे द्विजसत्तम ! देवदर्श के शिष्य मेध, ब्रह्मबलि, शौल्कायनि और पिप्पल थे || १० || हे द्विज ! पथ्य के भी जाबालि, कुमुदादि और शौनक नामक तीन शिष्य थे, जिन्होंने संहिताओं का विभाग किया || ११ || शौनक ने भी अपनी संहिता के दो विभाग करके उनमें से एक वभ्रुको तथा दूसरी सैन्धव नामक अपने शिष्य को दी || १२ || सैन्धव से पढकर मुच्चिकेश ने अपनी संहिता के पहले दो और फिर तीन विभाग किये | नक्षत्रकल्प, वेद्कल्प, संहिताकल्प, आंगिरसकल्प और शान्तिकल्प – उनके रचे हुए ये पाँच विकल्प अथर्ववेद संहिताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं || १३- १४ || (श्रीविष्णुपुराण, तृतीय अंश, अध्याय – छठा)
अथर्ववेद में सुमन्तु, जाजलि, श्लोकायनी, शौनक, पिप्पलाद और मुज्जकेश आदि शाखाप्रवर्तक ऋषि हैं | (अग्निपुराण, अध्याय १०४)
व्यास-शिष्य सुमन्तु ने अथर्ववेद की भी एक शाखा बनायी तथा उन्होंने पैप्पल आदि अपने सहस्त्रों शिष्यों को उसका अध्ययन कराया | (अग्निपुराण, अध्याय ५४)

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